श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिज ने प्रवचन के माध्यम से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गलतियाँ हर इंसान करता है। लेकिन इसे स्वीकार हर कोई नहीं कर पाता।
शायद ही कभी आपने इस बात को गंभीरता से लिया हो कि गलती हुई इसे स्वीकार कर लेने से क्या हो जाएगा या नहीं करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ेगा। याद रखिए गलती होने पर उसे स्वीकार कर लेना आपको आगे ले जाने वाले गुणों में से एक है। वे आगे बोले कि मानव स्वभाव है गलतियाँ करने का। गलतियाँ सभी से होती हैं। भले ही सो गलतियाँ करो लेकिन उन्हें दोहराओ मत। क्योंकि गलतियों को दोहराना मूर्खता है।
गलती हो उसे स्वीकार करो। कुछ गलतियाँ होती हैं जो अनजाने में हो जाती हैं और कुछ होती हैं जो आपसे जानबूझकर होती हैं। अनजाने में होने वाली गलतियों पर आपका बस नहीं चलता। उसके लिए तो सिवाय माफी माँगने के कोई चारा नहीं रह जाता। लेकिन जानबूझकर होने वाली गलतियों में आप कमी कर सकते हैं। ज्यादातर लोगों को अपनी गलती का अहसास बहुत देर से होता है। दरअसल हमें बहुत दिनों तक यह समझ ही नहीं आता कि हमने गलती कर दी है और जब अहसास होता है, तो काफी देर हो चुकी होती है।
दूसरी बात यह है कि हम धीरे-धीरे गलतियों से सबक लेते हैं। यह एक तरह से सहज प्रक्रिया है। जैसे-जैसे हम जिंदगी में आगे बढ़ते हैं, हमें बहुत-सी सही-गलत बातों का अहसास होता जाता है। लेकिन लंबे समय तक हम सही होने की जिद पर अड़े रहते हैं। सबसे अहम बात यह है कि अगर हम अपनी गलती स्वीकार नहीं करेंगे, तो आगे चलकर गलतियां रुकने की संभावनाएं ही खत्म हो जाएंगी। अगर हमने यह तय कर लिया है कि हम गलती कर ही नहीं सकते, तो इसका सीधा मतलब यह है कि हमारे अंदर मानव प्रवृत्ति ही नहीं है। गलती करना तो मानव प्रवृत्ति है। कोई इंसान हमेशा सही नहीं रह सकता है, अजीब बात यह है कि हम खुद को सही मानते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी हमें सही मानें।