चेन्नई. शनिवार को पांडीचेरी जैन स्थानक भवन में श्रमणसंघीय उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि परमात्मा प्रभु महावीर ने हमें यह महत्वपूर्ण सूत्र दिया है कि जो हम कर सकते हैं उसे अवश्य करना चाहिए और जो आज नहीं कर सकते या उसे करने का सामथ्र्य आज हमारे पास नहीं है उसे भविष्य में करने की भावना अवश्य रखनी चाहिए। जो व्यक्ति परमात्मा के इस सूत्र को अपाना लेता है वही, परमात्मा के धर्म को ग्रहण कर पाता है।
भगवान महावीर ने धर्म बढ़ाने और संसार घटाने के लिए आहार सौम्या का ध्यान रखने का सूत्र दिया है। जिस दिन आपके पास यह सूत्र आ जाएगा, उस दिन से हॉस्पीटल का खर्च रूक जाएगा। कम खाने से कोई नहीं मरता है लेकिन अधिक खाने से इसकी स्थित आ सकती है। संयमित भोजन ग्रहण करनेवाला उनोदरी तप का फल प्राप्त करता है।
परमात्मा का कहना है कि जो आप आज दे सकते हैं वह देने की तैयारी आज ही कर लेनी चाहिए और जो नहीं दे सकते उसे देने की भावना मन में होनी चाहिए। इसी में मनुष्य जीवन की प्रगति का राज छुपा है। चार गतियों में से जो एक मनुष्य गति है उसी में आत्मा की प्रगति हो सकती है। बाकी अन्य गतियों के जीव प्रगति नहीं कर सकते, उसके लिए उन्हें मनुष्य जीवन लेना ही पड़ता है।
मनुष्य जन्म की यह विशेषता है कि उसे हर कार्य सिखाना पड़ता है, अन्य गति के जीवों को सिखाने की जरूरत नहीं होती है। मनुष्य को यदि धर्म सिखाया जाए तो धर्म करेगा और पाप सिखाया जाए तो पाप करने लगेगा। इसलिए परिवार में अपनी संतति को अच्छी बातें सिखाने की जिम्मेदारी आपको लेनी चाहिए।
छोटी सोच रखनेवाला जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकता। अपनी बड़ी सोच के बल पर इतिहास में अनेकों व्यक्ति सफल हुए हैं। अपने परिवार, बच्चों और समाज में यह सीख और मनोदशा बनानी चाहिए कि जो आप अपने धर्म के लिए कर सकते हो उसके प्रति पहले करने की निष्ठा बनाएं और जो आज नहीं कर सकते उसे भविष्य में करने के प्रति अपनी भावना मन में बनाए रखें वह कार्य आप जरूर पूरा कर पाओगे।
उपाध्याय प्रवर ने सभी को एकजुट होकर अपने देव, गुरु और धर्म के प्रति निष्ठावान और संकल्पवान होने की सीख प्रदान दी।