सुखी, सफल और स्वस्थ जीवन के लिए नियमितता एवं समयबद्धता जरूरी है। इनके बिना कोई भी व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन सुचारू ढंग से नहीं कर सकता। आज व्यक्ति का जीवन असंतुलित एवं दिग्भ्रमित है। आर्थिक समृद्धि की दौड़ में जीवन की धारा एकांगी हो रही है। भौतिक सुखों के आकर्षण में जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पक्ष गौण हो रहे हैं। इसकी वजह से जीवन समस्याग्रस्त हो रहा हैl
उपरोक्त बातें श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में प्रवचन देते हुए पूज्य आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कही। उन्होंने आगे कहा कि कल नहीं आज सफलता का परम मंत्र है। हमें जीवन के हर क्षेत्र में इसका अनुसरण करना चाहिए। भूतकाल इतिहास है, भविष्य रहस्य है, वर्तमान उपहार है। इसलिए वर्तमान को प्रेजेंट कहते हैं। हमें आज के प्रति वफादार और जागरूक बनना चाहिए। जो आज को सार्थक बनाता है, उसके भूत और भविष्य दोनों सफल बन जाते हैं। जीवन की असफलता के जो कारण माने गए हैं, उनमें अनियमित जीवनशैली भी प्रमुख है। जो वर्तमान के कर्तव्य को भविष्य के लिए टालते रहते हैं, वे किसी भी दायित्व का निर्वाह समय पर नहीं कर सकते। उनके लिए कल कभी नहीं आता।
विश्व के एक संपन्न व्यक्ति ने अपने अनुभवों में लिखा है- धन के अधिक अर्जन से ज्यादा जरूरी है उसके सही नियोजन और उपयोग का ज्ञान। जो समृद्धि के उपयोग की कला नहीं जानते, वे धनवान होकर भी निर्धन हैं। समय के धन का भौतिक वैभव से अधिक महत्व है। इसके सही नियोजन और उपयोग में निरंतर जागरूकता जरूरी है। आज हर व्यक्ति स्वयं को व्यस्त समझ रहा है, पर वह व्यस्त से भी अधिक अस्त-व्यस्त प्रतीत होता है। व्यस्त रहना एक गुण है, पर अस्त-व्यस्त रहना एक त्रासदी है। समय की संपत्ति का समुचित उपयोग करने के लिए जीवनशैली को नियमित और व्यवस्थित बनाना जरूरी है।
जीवनशैली ऐसी बन गई है कि इंसान जीने के लिए सब कुछ करने लगा, पर खुद जीने का अर्थ ही भूल गया। न सही समय पर खान-पान, न भ्रमण, न व्यायाम, न कार्य का संतुलन, न अपनों के बीच संवाद, संपर्क, सहवास। हम दिन को भी रात की तरह जीने लग गए हैं। इसी से अशांति है, असंतुलन है, तनाव है, बेचैनी है। हालांकि शांत और स्थिर दिमाग बेहतर काम करता है। हर समय की बेचैनी किसी काम नहीं आती। ना हम वह कर पाते हैं, जो करना चाहते हैं और ना ही वह जो दूसरे अपेक्षा कर रहे होते हैं। समस्याएं कैसी भी हों, हमारा व्यवस्थित ना होना समस्याओं को बढ़ा देता है। हमारी भीतरी दुनिया जितनी सुलझी हुई होती है, बाहरी दुनिया उतनी व्यवस्थित होती चली जाती है। इसलिए भीतरी दुनिया को व्यवस्थित करना है।