चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा व्यक्ति की जैसी दृष्टि होती है वैसी ही सृष्टि उसे नजर आती है। दृष्टिकोण सम्यक होने पर व्यक्ति को सभी में गुण ही नजर आते हैं और ऐसा गुण अनुरागी स्वयं भी गुणवान बन जाता है।
हर इंसान में गुण और अवगुण दोनों ही मौजूद रहते हैं। छिद्रान्वेषी व्यक्ति चांद में दाग, गुलाब में कांटे, समुद्र में खारा पानी ही देखता है । दृष्टि दोष होने पर तो उपचार हो सकता है, मगर दोष दृष्टि होने पर किसी तरह का उपचार नहीं किया जा सकता।
इसलिए साधक को स्वयं के ही स्वभाव में और सोच में परिवर्तन लाना चाहिए। इंसान को अपना स्वभाव मक्खी की तरह नहीं अपितु भंवरे की तरह बनाना होगा। मक्खी हमेशा गंदगी को ही ग्रहण करती है, जबकि एक भंवरा फूल से पराग को ग्रहण करता है । व्यक्ति का नित्य प्रतिदिन गुण ग्रहण करने का भाव रहना चाहिए और दोष पर दृष्टि नहीं जानी चाहिए।
मनुष्य स्वयं के पहाड़ जितने दोषों को भी नहीं देखता है, परंतु दूसरों के अणु मात्र दोष का प्रसार कर देता है। इस अवसर पर जयकलश मुनि ने क्या ढूंढ़ता है बुराई किसी में गीतिका प्रस्तुत की।
मुनिवृंद के सानिध्य में मंगलवार से पर्यूषण पर्व आराधना प्रारंभ होगी। जयमल जैन चातुर्मास समिति के प्रचार प्रसार चेयरमैन ज्ञानचंद कोठारी ने बताया प्रतिदिन 8.30 बजे अंतगड सूत्र वाचन, 9.15 बजे से प्रवचन, दोपहर 2.30 बजे कल्पसूत्र वाचन और सूर्यास्त बाद प्रतिक्रमण होगा।