पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा परमात्मा कहते हैं कि अपने ज्ञान, चारित्र रिश्तों की डिजाइन में बदलाव करें। जैसी आपकी मानसिकता होगी वैसा ही आपका जीवन हो जाएगा। यदि एक बार स्वयं की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव हो गया तो आप किसी हत्यारे की मानसिकता को भी बदलकर उसे सकारात्मक और अहिंसक बनाने में सक्षम हो जाएंगे।
उन्होंने कहा, इस संसार का संचालन किसी एक सत्ता के हाथ में न होकर छह द्रव्यों- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल के हाथों में है। इन्हीं की परस्पर क्रिया, प्रतिक्रिया से ही संपूर्ण विश्व का संचालन होता है।
उन्होंने कहा कि जीवन में सफलता पाने के लिए परफेक्ट कार्य के साथ, ऑप्शन भी तैयार रखें। अपनी गलतियों से सीखें लें, उनकी पुनरावृत्ति कभी नहीं हो पाए और अपना चरित्र बदलें, यह प्रयत्न जीवन भर करें। यदि जीवन में इतना सुधार कर लिया तो आत्मा से परमात्मा बन जाओगे। उन्होंने श्रेणिक चरित्र का संदर्भ भी दिया।
जो व्यक्ति प्रमादी होता है और विषयों में स्थिर हो जाता है, उसके लिए वही विषय सजा बन जाते हैं, पनिशमेंट हो जाते हैं। विषय आत्मा का घर नहीं है, आत्मा का घर मनुष्य स्वयं है। उसे विषयों में रहने की बजाय ज्ञान, संयम, श्रद्धा और स्वत्व में रहना चाहिए। जिस समय व्यक्ति गलती करता है, उसकी सजा उसी समय मिल जाती है लेकिन पता बाद में चलता है।
तीर्थेश ऋषि ने कहा स्वयं के साथ दूसरों को भी धर्म कार्य करने और इस अवसर पर चातुर्मास समिति द्वारा तपस्वी विनय गुलेछा का सम्मान किया गया। ३१ अगस्त से २ सितम्बर तक ७२ घंटे का अष्टमंगल शिविर शुरू होगा।