चेन्नई. बुधवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने थाउजंड लाइट, चेन्नई स्थित अशोक गेलड़ा के निवास पर श्रद्धालुओं को संबोधित किया। उपाध्याय प्रवर ने मेडिटेशन और ध्यान के बारे में बताते हुए कहा कि ध्यान आपकी बीमारी को दूर करने का भी उपाय है। जितनी भी बीमारियां हमारे पास है, परमात्मा के अनुसार इनका सबका कारण ध्यान है और इनकी मुक्ति का कारण भी ध्यान है। किसी बगुले का ध्यान होता है शिकार और किसी साधक का ध्यान होता है परमात्मा।
जब-जब हम शिकारी बनते हैं और शिकार करते हैं, तब-तब हम स्वयं के लिए बीमारियों और मुश्किलों को आमंत्रण देते हैं। एक पल के लिए भी जितने भी जीव इस संसार में है ध्यान शून्य नहीं है। जिसका वो ध्यान करता है वह उसे अवश्य मिलता है। ध्यान और मेडिटेशन हमारी आत्मा का स्वभाव है।
यह न हो तो किसी भी आत्मा के लिए कर्मों का बंध ही न होता। बिना सोच और तक और आवश्यकता कि किया गया ध्यान संकटों को आमंत्रण देता है। जब हम सोचते हैं कि इसकी जगह मैं होता या ऐसा मेरे साथ होता तो मैं इस प्रकार अमुक कार्य करता इस प्रकार की सोच और ध्यान के कारण हमारे कर्मों का बंध होता है। जिस प्रकार तंदुलमत्सय जीव ने मात्र अपने ध्यान के कारण सातवीं नारकी का बंध कर लिया।
अनाथीमुनि लंबे समय तक बीमारी और वेदना का ध्यान कर रहे थे लेकिन जब उनका एक पल के लिए वेदनामुक्त जीवन का ध्यान हुआ तो पल भी नहीं लगा वेदना से मुक्त होते। क्योंकि उन्होंने अपने ध्यान का लक्ष्य बदल दिया। दु:खी व्यक्ति की यही सबसे बड़ा दु:ख है कि वह दु:ख का ही ध्यान करता है। जिसका आप ध्यान करोगे वही सत्य होगा, वही आपको प्राप्त होगा।
जिस समय आप अपना वास्तविक स्वरूप भूलकर किसी हीरो या हीरोइन के रूप में स्वयं को देखते हो तो स्वयं को नरक में डालने का प्रयत्न करते हैं। परमात्मा ने कहा है कि जो वो है ही नहीं उसके जैसा बनने का प्रयास करना और सोचना स्वयं के लिए नरक का रास्ते पर ले जाना है। बिना एक्शन के रिजल्ट पाने की टेक्नीक को मेडिटेशन कहते हैं।
यह बीमारी भी है और दवा भी। आपको कौन सा करना है यह पहचानना है। इसीलिए बार-बार कहा जाता है कि अपने अपमान, दुश्मन, असफलता और दु:ख को याद मत करो। जब जब ये याद आएंगे तो वे आपके जीवन में पुन: पुन: आएंगे ही। इसीलिए जीवन में बार-बार समस्याएं आती रहती है। परमात्मा इसीलिए कहते हैं कि आर्तध्यान और रौद्रध्यान करने वाले के जीवन में परेशानियां आती ही रहती है। किसी भी दुर्घटना को यादों में मत रखना।
जिस पर परमात्मा पर आपका फोकस हो जाएगा और दु:खों में भी अपना सौभाग्य मानने लग जाओगे तो आपका सौभाग्य शुरू हो जाएगा और जब दु:खों को अपना दुर्भाग्य मानोगे तो दुर्भाग्य शुरू हो जाएगा। इसलिए परमात्मा कहते हैं कि धर्म का ध्यान करो। पाप कथा से पाप का भविष्य बनेगा और धर्मकथा से धर्म ही भविष्य बनेगा। आप किस फोकस करते हैं यही आपका विषय है। नारकी में रहनेवाले जीव भी धर्मध्यान करते हैं और परमात्मा के चरणों में बैठनेवाले जीव भी आर्तध्यान कर लेते हैं।
जो स्वयं को और दूसरों को परमात्मा के रूप में देखता है वही दूसरों को परमात्मा बनाने में समर्थ होता है। भगवान महावीर ने चंडकोशिक को पूर्वजन्म के योगी के रूप को देखा और चंडकोशिक का योगी का रूप उजागर हुआ और वह सुधर गया। यह नजर का सामथ्र्य है, इसका उपयोग करें। जीवन का यही सूत्र है कि अपनी दृष्टि को पवित्र और मंगलमय बनाएं। यह विज्ञान भी है और अध्यात्म भी है। ऐसी दृष्टि यदि स्वयं और परिवार के प्रति हो जाए तो उन्हें और कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी। आपको चिंतन करने की जरूरत है कि ऐसा ध्यान करके आप अपना कैसा भविष्य निर्माण कर रहे हैं।