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जैन वे होते हैं, जो पल-पल डगर-डगर पर जयणा का पालन करे: आचार्य उदयप्रभ सूरी

जैन वे होते हैं, जो पल-पल डगर-डगर पर जयणा का पालन करे: आचार्य उदयप्रभ सूरी

किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ में विराजित योगनिष्ठ आचार्य केशरसूरीजी समुदाय के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने प्रवचन में आचारांग सूत्र की विवेचना की शुरुआत करते हुए कहा कि कोई भी जीव मेरे बर्ताव, व्यवहार से दुखी न हो, ऐसा करना अहिंसा है। जैन वे होते हैं, जो पल-पल डगर- डगर पर जयणा का पालन करे। समकिती आत्मा अपने स्टेटस की चिंता नहीं करता, वह अपने स्टेज की चिंता करता है।

वह सुखों की कमी को नहीं देखता लेकिन वह इस बात का ध्यान रखता है कि सुकृत की कमी नहीं हो। उन्होंने कहा दान ऐसा होना चाहिए जिसमें दान देने वाला व्यक्ति दुःखी न हो, दान लेने वाला भी दुःखी न हो और दिया जाने वाला पदार्थ भी दुःखी न हो। दान लेने और देने वाले के बीच वैमनस्य नहीं होना चाहिए। दान देना मनाही नहीं है लेकिन दी जाने वाली वस्तु का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। देश, काल, भाव, परिस्थिति देखकर दान देना चाहिए। उन्होंने कहा अज्ञान से बढ़कर कोई पाप नहीं है और मोह से बढ़कर कोई अंधापन नहीं है।

हम संसार में आंखें बंद करके पाप करते जा रहे हैं। हमें पुण्य और पाप के बारे में जानने का रस ही नहीं है। उन्होंने पृथ्वीकाय जीवों के बारे में समझाते हुए कहा पृथ्वीकाय को समझने के लिए चौदह आकाश के इतने जीव है कि आप गिन ही नहीं सकते। जो जीव दिखाई दे, वे बादर और जो दिखाई न दे, वे सूक्ष्म जीव होते हैं। जिस तरह हड्डी में भी जीव होते हैं, वैसे ही पत्थर आदि कठोर पदार्थों में भी पृथ्वीकाय जीव होते हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय आदि जीवों के चार प्राण होते हैं कायबल, सांसोश्वासबल, आयुष्यबल और स्पर्शेंद्रिय बल।

ज्ञानियों ने पृथ्वीकाय के जीवों में चेतना के उदाहरण भी प्रस्तुत किये, जो अचेतावस्था में होते हैं। उन्होंने कहा निद्रा पांच तरह की होती है निद्रा, निद्रा- निद्रा, प्रचलानिद्रा, चलनिद्रा और थीनदी निद्रा। आचार्यश्री ने कहा श्रम अपने आप में बड़ी दवा है। श्रम रोते-रोते नहीं, हंसते-हंसते करना चाहिए। वह मन की प्रसन्नचित्तता ‌देती है। उन्होंने कहा सुख शर्त पर जीता है और आनंद बिना शर्त जीता है। सुख अधूरापन का महसूस कराता है और आनंद पूर्णता का महसूस कराता है। सुख कर्मसत्ता जैसे महसूस कराता है और आनंद धर्मसत्ता जैसे महसूस कराता है। ज्ञानी कहते हैं जीवराशि भर- भर कर रही हुई है। हम उन्हें पूर्ण रूप से बचा तो नहीं सकते लेकिन बचाने की भावना मन में जरूर रखनी चाहिए। जयणा जितनी बढ़ेगी, घर में उतनी ही बीमारी कम होगी।

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