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जैन भवन वडपलनी में मनाई गई कृष्ण जन्माष्टमी 

जैन भवन वडपलनी में मनाई गई कृष्ण जन्माष्टमी 

कोडम्बाक्कम, वडापलनी स्थित श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 19 अगस्त शुक्रवार को परम पूज्य सुधाकवर जी महाराज साहब ने प्रभु महावीर की मंगलमयी वाणी का उद्बोधन करते हुए फरमाया:-आज के दिन कृष्ण भगवान का जन्म हुआ था इसलिए जन्माष्टमी कहते हैं! जनमानस के हृदय पटल पर अंकित कर्मयोगी कृष्ण का जन्म रात्रि में हुआ था! कंस की पत्नि जीवयशा ने अतिमुक्त मुनि को गोचरी जाते हुए देखकर कहा था कि इस उम्र में वे भिक्षा लेना छोड़ कर, तप त्याग छोड़कर, सांसारिक सुखों को भोगे! अपमानित अतिमुक्त मुनि ने कहा इतना अभिमान क्यों करती हो..?* *तुम्हारे पति की मृत्यु का कारण उसीकी बहन देवकी का सातवां बच्चा होगा!

अति मुक्त मुनि के सत्य वचन को सुनकर कंस भी कुपित हो गया! कंस की बहन देवकी की शादी वासुदेव के साथ होते समय माया जाल जैसे शब्दों का प्रयोग करके उन से वचन ले लिया था कि उनकी हर प्रसूति कंस की इच्छा अनुसार ही होगी, और धोखे से उन्हें कारागृह में डाल दिया था! 6 बच्चों के बाद सातवें बच्चे के जन्म लेते ही बच्चे के अंगुष्ठ स्पर्श मात्र से ही ताले खुल जाते हैं द्वार खुल जाते हैं यहां तक कि रौद्र रूप धारण की हुई यमुना नदी भी रास्ता दे देती है और सभी पहरेदार मूर्छित हो जाते हैं! नाग देवता भी कृष्ण भगवान की रक्षा हेतु छतरी बनकर अपना कर्तव्य निभाते हैं!

गोकुल से यशोदा की बच्ची को लेकर आते ही सब कुछ पहले जैसे ही हो जाता है! द्वार और ताले बंद हो जाते हैं, पहरेदार जाग जाते हैं! अट्टहास करते हुए कंस बच्ची को शिला पर पटक पटक कर उसे मार देता है और, उधर गोकुल में कृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है! कृष्ण माखन चोर भी बने और गोपियों के लाडले भी! श्री कृष्ण आने वाले 24 तीर्थंकरों में बाहरवें तीर्थंकर बनेंगे! कृष्ण भगवान में कभी अभिमान नहीं था! गरीब सुदामा से सच्ची दोस्ती भी निभाई, महारथी अर्जुन के सारथी भी बने! कालिया नाग दुर्योधन और कंस जैसे छः दुश्मनों का सर्वनाश भी किया!

सुयशा श्रीजी के मुखारविंद से:-सही समय पर अच्छे कामों का सम्मान करना दूसरों की खुशियों में सम्मिलित होना, ऐसी खूबियां हममें होनी चाहिए! साथ ही सब तरह की सुविधा होने पर भी अभिमान नहीं करना चाहिए! हमें और हमारे परिवार में “ना” सुनने की आदत डालनी चाहिए! हर समय हम या हमारे बच्चे ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि “जो हम चाहे वही हो!” “ना” सुनने की आदत हमें परिपक्व बनाती है! मांगते ही मिल जाने से या मांगने से पहले ही मिल जाने की प्रवृत्ति बच्चों को बिगाड़ देती है! कभी कभी कोई चीज के लिए हमें उन्हें मना करना पड़ता है और उन्हें इस “मना” करने को मानना चाहिए, जिद नहीं करनी चाहिए! बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक पढ़ाने लिखाने या समझदार बनाने की माता पिता की लालसा बच्चों को बिगाड़ देती है या ढीठ बना देती है!

परिवार में पति, बच्चों और अन्य सभी सदस्यों के प्रति स्नेह वात्सल्य होना चाहिए! लेकिन कभी-कभी जरूरत पड़ने पर उसकी सीमा होनी चाहिए ताकि परिवार में कोई भी उद्दंड ना बने! माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों पर ऐसी अपेक्षाएं ना थोंपे जो वे खुद बनना चाहते थे और ना बन सके! बच्चों को यह कभी भी नहीं लगना चाहिए कि उनके माता-पिता जिन चीजों से वंचित रहे, उसी का उलाहना देते हुए उन्हें भी वंचित रखना चाहते हैं! सभी जगह पर सभी माता-पिता हमेशा सही नहीं होते और सभी जगह पर सभी बच्चे हमेशा गलत नहीं होते!

इस बात का सामंजस्य होना बहुत जरूरी है! जिंदगी वैसे ही चलेगी जैसे चलनी है! हर परिस्थिति को संभालने की क्षमता बच्चों में होनी चाहिए, इसलिए उनमें “ना” सुनने की आदत होनी ही चाहिए! अत्यधिक अपेक्षाएं और अत्यधिक रोकना रोकना कभी-कभी बच्चों को ही नही बल्कि बड़ों को भी डिप्रेशन की ओर ले जाती है! कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर कई बच्चों ने फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में भाग लेकर अपनी प्रतिभा उजागर की।आज की धर्म सभा में हैदराबाद से महिला मंडल, बेंगलुरु, किशनगढ़, अजमेर एवं चेन्नई के कई उपनगरों से श्रावक पधारे थे!

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