नार्थ टाउन में विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने फरमाया कि आत्म बधुओ, जैन धर्म सम्पूर्ण विश्व में सबसे उत्कृष्ट धर्म माना जाता है क्यों ? अहिंसा संयम तप का निरूपण है। अहिंसा संयम व तप को जो महत्व जैन धर्म में दिया है। वो महत्व, अन्य किसी धर्म में नही है। शेष धर्म त्यौहार आदि के दिन पाला जाता है परंतु जैन धर्म तो जन्म से लेकर अन्तिम सांसों तक पालन करने का निर्देश दिया गया है ये एक दो घंटे नहीं, बल्कि जीवन के हर काल हर क्षेत्र में भाव सहित पालन का निर्देश दिया गया है। जैसे नमक के बिना भोजन मन को प्रिय नही लगता वैसे ही भाव रहित धर्म क्रिया, भाव रहित आचरण प्रियकारी नहीं होती । भाव सहित आचरण भाव सहित धर्म क्रिया कर्मों कि निर्जरा कराती है।
दुर्गति से बचने व सद्गति को प्राप्त करने के लिए जैन धर्म बड़ा ही महत्वपूर्ण है। धर्म चर्चा का विषय नहीं अपितु धर्म तो जीवन में अपनाने का विषय है। जिससे मन में उमंग-उत्साह जागृत होता है। जैसे-2 अभ्यास किया जाता है पालन किया जाता है वैसे -2 धर्म क्रिया के साथ अन्य क्रियाओं में भी विवेक जागृत हो जाता है जैसे -2 विवेक जागृत होता है वैसे-2 कर्म निर्जरा होती है। घर के बड़ो कि हर क्रिया में यदि धर्म दिखाई देता है तो छोटो को अलग से धर्म क्रिया की प्रेरणा नहीं देनी पड़ती। जब तक धर्म आचरण में नही आयेगा जीव का कल्याण नहीं हो पायेगा। पहले संयुक्त परिवारों में अत्यन्त व्यवस्तता होने के बावजूद धर्म को छोड़ते नहीं थे।
घर का पदार्थ खाने से जैन धर्म का पालन सहज में हो जाता है जबकि होटल में खाने वाले को 100 % मासांहार का दोष लगता है। जब धर्म के और रुचि पालन भाव मन में नहीं होगी उत्पन्न तब सही ढंग से धर्म पालन नहीं हो पायेगा। ये जानते हुए कि होटल के खाने में बाहर के पदार्थों में मांसाहार का दोष लगता है उन्हें तारीफ कर कर के खाने व खिलाने से निकाचित कर्मो का बंध होता है और उन निकाचित कर्मों को चाहे गर्भ में हो, चाहे बाल्या वस्था में हो उनकी वेदना भोगनी ही पड़ती है। इसलिए ज्ञानी जन कहते है पाप से बचों पुण्य को सुरक्षित रखो। श्रेष्ठ जिनवाणी को सुनकर भी यदि जीवन में परिवर्तन नही लाओगे तो फिर चाहे आप ट्रेन में या रेल मे जाओगे कर्म तो लाइन में साथ ही चलेंगे । भगवान कहते है कि आज जहाँ प्रमाद होता है वहाँ से ज्ञान लुप्त हो जाता है।
कार्याध्यक्ष पदम खीचा ने संचालन करते हुए आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।