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जैन धर्म में पर्युषन पर्व का विशेष महत्व है: पुज्य जयतिलक जी म सा

जैन धर्म में पर्युषन पर्व का विशेष महत्व है: पुज्य जयतिलक जी म सा

पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि करुणा के सागर भगवान महावीर ने महान करुणा कर भव्य जीवों को संसार सागर से पार उतरने के लिये जिनवाणी रूपी गंगा प्रवाहित की। जैन धर्म में पर्युषन पर्व का विशेष महत्व है! पर्व के दिन साधक विशेष रूप से कर्म निजरा करने का लक्ष्य रखता है! पर्यूषण पर्व में साधक संसार को भुल कर आत्मा के समीप रहने का प्रयास करता है। इन आठ दिनों में संसार प्रवृत्तियो से निव्रति ले लो। अन्यथा आत्मा के समीप आने की मुशकिल हो जायेगी। अब आत्मा के समीप कैसे आए। भले ही शरीर के भितर आत्मा है किंतु आप उसका समरण नहीं करते  और संसारी संबधो वस्तुओं की कामना करते है अतः आप आत्मा से दूर है।

इन आठ दिनों में कम के कम अपने भीतर आए आत्मा का अनुभव करे और आप अष्ट कर्मों को क्षय करने का प्रयास करे। अंतगढ़ दशा मे 90 महान आत्माओं का वर्णन है जो आत्मा के समीप आए और अष्टकर्मो को क्षय कर अक्षय सुख को प्राप्त कर लिया। पर्व, अर्थात ऊपर उठना, जैसे जैसे आत्मा हल्की होती जाएगी वैसे वैसे उपर उठेगी। प’ अर्थात पाप – “व” अर्थात विनय, विवेक, विश्वास है यह पर्व पाप और पुण्य दोनो को क्षय कर विनय, विवेक, विश्वास से आत्मा की रक्षा करता है। दुज, पांचम आठम, ग्यारस, चौदस यह पर्व तिथि है इन दिनों में उपवास पौषध करो। प्रसंग गौतम आदि 18 भाईयों का है। भगवान अरिष्टनेमि उद्यान में पधारें । द्वारिका बसी नहीं, बनाई गई! जब कंश का वध हो गया तो जीवयशा पिता जरासंध के पास पहुँची और पिता को बोला जब तक आप उस कृत्य को दण्डत नहीं करेंगे तब तक मैं केश राशि नहीं बांधुगी । यह संकल्प कह सुनाया।

 जरासंध ने अपने पुत्र को कहा सारे वंश को खत्म कर फिर लोटना। श्री कृष्ण को ज्ञात हुआ तो विशेषज्ञ से सलाह ली। नितिज्ञ ने कहा जहाँ पर सत्यभामा पुत्र प्रसव करेगी उसी भूमि पर आप वास कर लेना! जीवण यापण के लिए क्षेत्र की पुण्यवानी भी आवश्यक है। कहते है कि मेडता वासी को एक बार छोड़ना पडा। और जहाँ जा कर बसे उसे लाखनकोठरी के नाम से जाना जाता है! क्षेत्र साथ न दे तो छोड़ना ही पड़ता है। वास्तु का संबध मिथ्यात्व नहीं है यह तो लौकिक त्यौहार है। 72 कला लौकिक विध्या है वास्तु भी एक कला है! 72 कला जीवन निर्वाह का आधार है।

श्री कृष्ण लवण समुद्र के किनारे बैठ गये और अठम तप किया! इन्द्र का आहवान किया। 12 योजन लंबी 7 योजन चौडी नगरी समुद्र को थोड़ा पीछे हटाकर बसाई, जिसके 12 द्वार थे अत: उसका नाम द्वारिका रखा गया। जिसमें रत्नो के कमरे व सोने की नगरी बसाई। वहां रहने वाले जीवों के जीवन थापन के लिए तीन दिन तक स्वर्ण मुद्रा बरसाई। मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने आगामी कार्यक्रमो की सूचना दी। चंदनबाला महिला मण्डल द्वारा मेमोरी पावर प्रतियोगिता रखी। 80 जनों ने भाग लिया। विजेताओ को ईनाम दीया गया। यह जानकारी गौतमचंद खटोड ने दी।

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