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जैन धर्म में निरोगी काया को प्रथम सुख माना है: पुज्य जयतिलक जी म सा

जैन धर्म में निरोगी काया को प्रथम सुख माना है: पुज्य जयतिलक जी म सा

रायपुरम जैन भवन में विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि साधक, संसार में रहते हुए विवेक पूर्वक जीवन यापन करता है तो सहज ही धर्म का पालन होता है । अनासक्त भाव से कार्य करे तो कर्मबन्ध की संभाव कम रहती है। जैन-धर्म में निरोगी काया को प्रथम सुख माना है। एसे सुख की प्राप्ति के लिए आगार धर्म में 26 बोलों की मर्यादा बताई है। सातवाँ उपभोग परियोग व्रत फरमाया जाता है। एक बार में उपयोग आने वाली चीज उपयोग जैसे रोटी आदि। बार बार उपयोग में आने वाली चीज परिभोग जैसे वस्त्र आदि।

गृहस्थी में रहते हुए पाप करना पड़‌ता है किन्तु अरूचि पूर्वक करने के विवेक से करने से कर्म बंध अल्प होते हैं । अंग पोछने का साधन, दातो के साफ करने के दातो की मर्यादा, फल, साबून, नहाणे के फल आदि, शरीर की साता के लिए तेल आदि की मर्यादा, पोठी मिट्टी लेप आदि की मर्यादा, प्रतिदिन स्नान के लिए पानी की मर्यादा, एक दिन में कितने ड्रेस पहनने उसकी मर्यादा, सुगन्धित पदार्थों का शरीर पर विलेपण, सचित फुल माला आदि का त्याग या परिमाण, शरीर के ऊपर आभूषण को धारण करने की मर्यादा सबको कररनी चाहिए ।

ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए सूचना दी कि दि: 24/08/2022 से 31-8-2022 बुधवार तक जैन भवन, रायपुरम मे श्री एस एस जैन ट्रस्ट रायपुरम द्वारा पर्यूषण पर्व में अंतगढ सुत्र वांचन: सुबह 8:45 से 9:15 तक, प्रवचन: 9:15 से 10:15, धार्मिक क्लास व प्रतियोगिता 10:15 से 11, कल्प सुत्र वांचन: दोपहर 2 से 3, सूर्यास्त के पश्चात प्रतिक्रमण होंगे।

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