जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने आदिनाथ भगवान की तप की व्याख्या करते हुए कहा कि तप तीन तरह से सम्पन्न होता है, मानसिक वाचिक कायिक तप के अंतर्गत हम कायिक तप को ही महत्व देते है जबकि प्रमुख तप तो मानसिक होता है! जब मन के रोम रोम मे तप समा जाता है तो कायिक तप को करना नहीं पड़ता वह तो स्वत हो जाता है! धर्म का सीधा सम्बन्ध मन से जुडा रहता है, वही क्रिया साधना सफल होती है जो मनोयोग पूर्वक की जाती है! वर्तमान मे हमारा मन अस्त व्यस्त रहता है क्योंकि हम मन के वशीभूत हो जाते है जब कि होना यह चाहिए मन हमारे वश मे बना रहे, पूर्व महासाधको ने मन को हमेशा वश मे रख लेते थे उसके कारण उनकी दैनिक चर्या स्वत : धार्मिक होती रहती है!
आज मन की किर्याए शुद्ध न होने के कारण सपूर्ण कार्य पाप मय चलते रहते है इसी कारण हमारे कर्म बन्धन बंधते रहते है! सभा मे गोहाना श्री स्वाध्याय संघ के पदाधिकारी गण उपस्तिथ रहे। बहिन प्रतिभा व बालिका यशवी जैन का विशेष अभिन्दन किया गया। जिन्होंने अपना जीवन समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। तपस्वीशकुंतला जैन का दीर्घ तपाराधना पर हार्दिक अभिनन्दन किया गया!
eसाहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा धर्म सभा का सयोजन स्वरूप प्रदान किया गया! प्रधान महेश जैन महामंत्री उमेश जैन, प्रमोद जैन, पुष्पपिंन्द्र जैन, मोहिन्दर जैन परषोतम जैन, श्रीमति कमलेश जैन, डोली जैन व गुलशन जैन द्वारा तपस्वी बहनों का अभिनन्दन किया गया! महामंत्री उमेश जैन द्वारा सूचनाएं प्रदान की गई।