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जैन धर्म की मानसिकता है कि आत्मा ही कर्ता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

जैन धर्म की मानसिकता है कि आत्मा ही कर्ता है: पुज्य जयतिलक जी म सा

रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि आत्मा ही परमात्मा बनती है! लोक में मान्यता है कि परमात्मा ही सब कुछ बनाता है। सुख दुख देता है किंतु जैन धर्म की मानसिकता है कि आत्मा ही कर्ता है। भोक्ता है। स्वयं के सुख दुःख का वह स्वयं ही जिम्मेदार है! श्रावक – श्राविका को नव तत्व कर्म सिद्धान्त का ज्ञान होना आवश्यक है । जिससे वह कर्मो से बच सकता है। कवि ने क्या सुंदर बात कही है ‘

जरा कर्म तो देख कर करिए,

इन कर्मों को बहुत बुरी मार है

नहीं बचा सकेगा परमात्मा,

फिर ओरो को क्या एतबार है”

जीव पाप कर्म को हसंते हंसते बांधता है और भोगते समय बडा ही दुःख होता है! यदि आप दुःख नहीं देखना चाहते है तो कर्म को देख कर करो, यह कर्म ही हमें बंदर की तरह नचाते है, कर्म को शर्म नहीं! कर्म भोगते समय जितना आर्त ध्यान करोगे तो उतने ही कर्म और बंधते है। कर्म से जन्म मरण की श्रृंखला बढेगी ! जन्म का मूल कारण कर्म है। और जन्म में वेदना भयंकर होती है! प्राणान्तक वेदना होती है। असाता वेदनीय का उदय होता है! बच्चें को 7 साल तक रोग की वेदना होती रहती है। हमारे शरीर में साढे तीन करोड़ रोम है और एक एक रोम पौने दो रोग होते हैं। “जीव के साथ निरन्तर चार वेदना होती है, जन्म, जरा, रोग, मृत्यु।

सारे कर्म इसी धरती पर भोगने पड़ते है। कर्म भोगने में समभाव रख ले तो क्षय हो जाते है! भगवान ने संसार का सार नवतत्व के रूप में दिया। इस तत्त्व को आप समझ ले तो संसार से पार हो जाओगे अन्यथा कोई मार्ग नहीं है कर्म से बचने का । संसार में रहते कर्म बंध से बचना बहुत मुशकिल है बतीस दांतो के बीच जीभ सुरक्षित रहती है वैसे ही विवेक से आप कर्मबन्धन से बच सकते हो। जीव- उपयोग लक्षण चेतना वाला, अजीव- जड़, चेतना रहित

संसार में दो ही तत्व मूल है, दोनो का संबंध अनादि काल से है। यहाँ तक सर्वज्ञ सर्वदर्शी भी यह नहीं बता सकते जो जीव और अजीव कब से है! जीव अजीव अनादि अनन्त है। जीव दो प्रकार के कार्य करता है। शुभ अशुभ प्रवर्ति। पाप और पुण्य का बंध आद्वव के मार्ग से आते है। आत्मा और कर्म एकमेरु होना बंध है। आते हुए कर्मो को रोकना संवर हैं। पूर्व कर्मो की शुद्धि के लिए बारह भेद तपस्या करना निर्जरा है। यदि आपने तत्व को समझ लिया। 25 क्रिया को रोक लिया तो आपके मोक्ष निकट है।

धर्म सभा का संचालन ज्ञानचंद कोठारी ने किया। वरिष्ठ स्वाध्यायी श्रीमति मधुजी बोहरा ने अंगुली पर सरल तरीक से थोकडे का मासखमन करवाया। मासखमन करने वाली वाले बहने :-नमिता सचेंती, अरुणा कोठारी, ममता कोठारी, संगीता, सुनिता कोठारी, पिंकी कोठारी, M सुनिता कोठारी, सीमा कोठारी, अनुराधा कोठारी, D. सुनीता कोठारी, पिंकी मरलेचा, कविता बंब, राजमती कोठारी ने किया।

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