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जैन दर्शन से सर्वश्रेष्ठ ज्ञान किसी भी धर्म ने नहीं: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

जैन दर्शन से सर्वश्रेष्ठ ज्ञान किसी भी धर्म ने नहीं: डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा.

     स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई

 विश्व हितेषी प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत युग प्रभावक, श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंश

   🪔 *विषय : ज्ञान का सागर श्री अभिधान राजेंद्र कोष*🪔

~ जीवन में पापों का क्षय हो और आराधना की भावना से गुणों का प्रगटिकरण हो वह है सम्यक् ज्ञान।

~ श्री अभिधान राजेंद्र कोष विश्व का कोहिनूर हीरा है यदि हमारे मन में उसकी कीमत है तो ही हमारे लिए उपकारी साबित होगा।

~ जैन दर्शन ने जो समग्र विश्व को जो ज्ञान का दान दिया है उससे सर्वश्रेष्ठ ज्ञान किसी भी धर्म ने नहीं दिया है।

~ श्री अभिधान राजेंद्र कोष का प्रारंभ सियाणा नगर में और पूर्णाहुति गुजरात की सूरत नगरी में हुआ था यह ज्ञान साधना साडे14 साल तक चली थी।

~ श्री अभिधान राजेंद्र घोष के प्रथम भाग में केवल ‘अ’ अक्षर के संदर्भ में परम पूज्य प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीशवारजी म. ने 7000 शब्द लिखे हैं।

~ प. पू. विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी म.ने स्वयं के जीवन में श्री अभिधान राजेंद्र कोष के लेखन में प्रतिदिन 95 श्लोक की रचना, उसकी संपूर्ण माहिती और सभी धर्म के सभी ग्रंथों की ज्ञान गरिमा उसमें अवतरित की थी इसीलिए इन्हें कलिकाल सर्वज्ञ कहा जाता था।

~ समग्र शास्त्रों का सार यदि कोई ग्रंथ में है तो वह है श्री अभिधान राजेंद्र कोष।

~ प. पू. प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज ने 63 साल की उम्र में जब मानव कार्यों से निवृत्ति लेने की भावना रखता है उसे समय में परम अमर कार्य श्री अभिधान राजेंद्र कोष का प्रबल संकल्प और अखंड पुरुषार्थ किया था।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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