क्रमांक – 13
. *तत्त्व – दर्शन*
*🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*
*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*
*🔅 अजीव तत्त्व*
*जीव का प्रतिपक्षी तत्त्व अजीव है। न जीव अर्थात् जो जीव नहीं है वह अजीव है । जिसमें चेतना है वह जीव है और जिसमें चेतना नहीं है वह अजीव है। जो उपयोगवान है वह जीव है और जो अनुपयोगवान है वह अजीव है। जिसमें बोध क्रिया है वह जीव है, जिसमें बोध क्रिया नहीं है वह अजीव है। जैनदर्शन जीव के साथ-साथ अजीव को भी नित्य, शाश्वत एवं उत्पत्ति विनाश से रहित सत्ता मानता है। इसीलिए जैनदर्शन को द्वैतवादी भी कहते हैं। सांख्य भी द्वैतवादी है। सांख्य प्रकृति एवं पुरुष की सत्ता को मानता है। पुरुष जीव है तो प्रकृति अजीव है। दोनों के संयोग से ही संसार का उद्भव होता है तो दोनों के वियोग से मोक्ष संभव बनता है। यही स्थिति जैनदर्शन में भी है।*
*जैन दर्शन के अनुसार लोक अथवा सृष्टि की अवधारणा को समझने के लिए धर्मास्तिकाय आदि छः तत्त्वों को विस्तार से समझना आवश्यक होता है। किन्तु आत्मा को संसारी अवस्था से मुक्त करने के लिए केवल पुद्गल द्रव्य को समझना आवश्यक होता है। क्योंकि कार्मण वर्गणा के पुद्गल ही कर्म रूप में परिणत होकर आत्मा के साथ चिपक जाते हैं तथा उसे संसार में परिभ्रमण करवाते हैं। ये कर्म-पुद्गल ही शुभरूप से उदय में आने पर पुण्य और अशुभरूप से उदय में आने पर पाप कहलाते हैं। जब तक ये कर्म-पुद्गल अपना फल नहीं देते, आत्मा के साथ चिपके रहते हैं, तब तक बंध कहलाते हैं। जब तक जीव का इस अजीव तत्त्व के साथ संबंध रहेगा तब तक जीव संसार से मुक्त नहीं हो सकता। अतः संसार से, कर्मों से अथवा दुःखों से मुक्ति चाहने वाले व्यक्ति के लिए ये आवश्यक है कि वह दुःख, दुःख के कारण और दुःख मुक्ति के उपायों को जानें। जानने के बाद दुःख के कारणों को छोड़ें तथा दुःखमुक्ति के उपायों को ग्रहण कर उसका आचरण करे, जिससे कि वह दुःखमुक्त अवस्था मोक्ष को प्राप्त कर सके।*
*क्रमशः ………..*
*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*
विकास जैन।