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ज्ञान वाणी

जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष

क्रमांक – 11

. *तत्त्व – दर्शन*

 *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*

*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*

*🔅 जीव तत्त्व*

*जीव तत्त्व के मुख्यतः दो भेद किये गए हैं – संसारी और मुक्त। इस तथ्य को तत्त्वार्थ सूत्र में ‘संसारिणो मुक्ताश्च’ सूत्र के द्वारा समझाया गया हैं। जो जीव कर्मबंधन से युक्त है वह संसारौ है और जो कर्मफल से पूर्णतः रहित हो गये हैं वे मुक्त हैं। जीव की परमविशुद्ध दशा ही मोक्ष है। संसारी जीव दो प्रकार के होते हैं – त्रस और स्थावर। जो जीव गतिमान होते हैं, उन्हें त्रस और जो स्थिर होते हैं उन्हें स्थापर कहते हैं। स्थापर जीव सबसे अपूर्ण-अविकसित होता है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु, वनस्पति के जीव स्थावर जीव कहलाते हैं। इसमें केवल स्पर्शेन्द्रिय होता है अतः इन्हें केवल स्पर्श का भान होता है। गतिशील जीव (त्रस) दो इन्द्रिय वाले होते हैं, जिन्हें द्वीन्द्रिय कहा जाता है। इनमें त्वचा और जिह्वा है। ये सीप, घोंघा आदि हैं। चींटी आदि त्रीन्द्रिय जीव हैं। इसमें त्वचा, जिह्वा तथा नासिका ये तीनों इन्द्रियां है। मक्खी, मच्छर, भौंरा आदि चतुरिन्द्रिय जीव हैं। इनमें चार इन्द्रियां हैं – त्वचा, जिह्वा, नासिका तथा चक्षु। उच्च पशुओं, पक्षियों तथा मनुष्यों में पांच इन्द्रियां होती हैं, जो इस प्रकार है त्वचा, जिह्वा, नासिका, चक्षु तथा कर्ण। एकेन्द्रिय के भी दो भेद किये गये हैं – सूक्ष्म और बादर। पंचेन्द्रिय के भी को भेद किये गये हैं – संज्ञी और असंज्ञी। एकेन्द्रिय जीवों को ध्यान में रखकर सूक्ष्म और बादर भेद किये गये हैं। शेष सभी जीव बादर ही होते हैं। इसी प्रकार संज्ञी और असंज्ञी की कल्पना पंचेन्द्रिय जीवों को केन्द्र में रखकर की गयी है। शेष चतुरिन्द्रिय तक वे सभी जीव असंज्ञी होते हैं। सूक्ष्म जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। बादर जीव सूक्ष्म जीवों की तुलना में कम व्याप्त हैं।*

*सूक्ष्म-बादर, संज्ञी-असंज्ञी सभी जीव उत्त्पत्ति के समय अपर्याप्त होते हैं। जिस जीव को जितनी पर्याप्तियां प्राप्त होनी चाहिए, जब तक उनका निर्माण नहीं हो पाता तब तक वे अपर्याप्त कहलाते हैं। उन पर्याप्तियों का बन्धकाल पूरा होने से ही वह जीव पर्याप्त होता है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय इस प्रकार सात विकल्पों के अपर्याप्त, पर्याप्त के भेद से जीव के चौदह भेद हो जाते हैं।*

*क्रमशः ………..*

*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*

विकास जैन।

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