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जैन दर्शन में काया की हिंसा से अधिक खतरनाक होती है मन की हिंसा : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

जैन दर्शन में काया की हिंसा से अधिक खतरनाक होती है मन की हिंसा : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

्रपर्यूषण पर्व के दौरान जैन साध्वी ने बताया कि मन की हिंसा करने वाला नरक जाता है, लेकिन काया की हिंसा करने वाले के लिए खुल सकते हैं मोक्ष के द्वार

Sagevaani.com @शिवपुरी। जैन दर्शन में मन की हिंसा को काया की हिंसा से अधिक खतरनाक बताया गया है। अंतगढ़ सूत्र में वर्णित है कि प्रतिदिन 6 पुरुष और 1 स्त्री तथा कुल 1141 प्राणियों का वध करने वाले अर्जुनमाली के लिए मोक्ष के द्वार खुल सकते हैं, लेकिन मानसिक हिंसा करने वाला नरक में ही जाता है। उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने पर्यूषण पर्व के सातवे दिन आराधना भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। पर्यूषण पर्व में प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी महाराज ठाणा 5 सतियों के निर्देशन में धर्म ध्यान, व्रत उपवास की झड़ी लगी हुई है। कई श्रावक और श्राविकाएं पूरे आठ दिन का उपवास कर रहे हैं तथा सामयिक प्रतिक्रमण आदि भी सुबह-शाम धर्मांवलंबियों द्वारा किए जा रहे हैं। धर्मसभा में श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर डॉ. शिवमुनि जी के 81वे जन्मोत्सव पर गुणानुवाद सभा भी हुई।

धर्मसभा में साध्वी जयश्री जी ने सबसे पहले ऐसा अपना घर हो सुंदर ऐसा अपना घर हो, विनय विवेक हो नींव जिसमें, प्रेम प्यार की छत हो…भजन का सुमधुर स्वर में गायन किया। इसके बाद साध्वी जयश्री ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता था। वह दूसरों के दुर्गुणों की अपेक्षा उसके गुणों को देखते थे। धर्म की दलाली कर उन्होंने तीर्थंकर गोत्र का बंध किया और अगली चौबीसी में वह जैन धर्म के 12वे तीर्थंकर बन गए। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि अर्जुनमाली की पत्नी के साथ छह युवकों ने बलात्कार किया। जबकि वह किसी यक्ष की उपासना कर रहा था। यह देखकर उसे बहुत गुस्सा आया और उसने यज्ञ को चुनौती दी और इसका परिणाम यह हुआ कि यक्ष उसके शरीर में प्रविष्ट हुआ और फिर उसने छह पुरुषों और अपनी पत्नी की हत्या कर दी। वह प्रतिदिन छह पुरुषों और एक स्त्री की हत्या करता था। इस तरह से उसने 1141 प्राणियों का वध किया।

उसके आतंक के कारण कोई वहां से नहीं गुजरता था जहां अर्जुनमाली रहता था, लेकिन उसी समय भगवान महावीर का नगरी में आगमन हुआ और उनके दर्शन के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना सुदर्शन श्रावक वहीं से गुजरे जहां अर्जुनमाली रहता था, परंतु सुदर्शन श्रावक की सकारात्मकता और प्रभु भक्ति के आगे अर्जुनमाली बेबश हो गया और उसके शरीर से यक्ष बाहर निकल आया। साध्वी जी ने कहा कि अर्जुनमाली का मन निर्दोष था वह फिर प्रभु की शरण में आया और मुनि बन गया। इसके बाद जिन लोगों की उसने हत्या की थी उसके परिजनों ने उस पर यातनाओं की झड़ी लगा दी। परंतु वह शांत भाव से यातनाएं सहन करता रहा तथा छह माह में ही वह उपसर्ग सहन करते-करते मोक्ष चला गया। इसके बाद साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने भगवान महावीर के साधना काल के साढ़े बारह वर्षों का विवरण बताया और कहा कि उन पर तमाम तरह के उपसर्ग आए। उन्हें संगम देवता ने एक ही रात में 20 उपसर्ग दिए। वह जेल गए, उन्हें फांसी पर लटकाया गया, लेकिन इसके बाद भी वह विचलित नहीं हुए और साढ़े बारह वर्ष की साधना के बाद उन्होंने केवल्य ज्ञान प्राप्त किया।

हम गौरवान्वित हैं कि हमें डॉ. शिवमुनि जैसे पट्टधर मिले हैं

18 सितम्बर 1942 को पंजाब के एक छोटे से गांव में जन्मे आचार्य शिवमुनि श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर हैं। उन जैसे उत्कृष्ट ध्यान योगी और तपस्वी रत्न साधक विरले ही हैं। साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने गुणानुवाद सभा में आचार्य डॉ. शिवमुनि जी की आध्यात्मिक खूबियों का बखान करते हुए कहा कि वह 37 साल से एकांतर तप कर रहे हैं और तपस्या के बाद भी उनका विभिन्न क्षेत्रों में आध्यात्मिक प्रसार हेतु विचरण निरंतर जारी है।

वह वर्ष में तीन बार ध्यान साधना शिविर का आयोजन करते हैं जिसका लाभ सैकड़ों साधक उठाते हैं। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने आचार्य डॉ. शिवमुनि जी के जीवन के कई किस्सों को याद किया और कहा कि वह हृदय से बहुत सरल थे। हमने उन्हें साधु के रूप में युवाचार्य के रूप में और पट्टधर के रूप में देखा है। वह अमेरिका तथा ब्रिटेन में पढ़े हैं, लेकिन इसके बाद भी धर्म मार्ग से विमुख नहीं हुए। उनकी संपन्नता भी उन्हें उनके आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक नहीं बन सकी।

धर्म क्षेत्र में नारी की दोयम स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि पुरुष प्रधान समाज में नारियों की हर क्षेत्र में दोयम स्थिति है। जबकि सच्चाई यह है कि हमें धन, विद्या और बल प्राप्त करना है तो तीन-तीन देवियों लक्ष्मी, सरस्वती और माँ दुर्गा की पूजा और आराधना करते हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र में भी साध्वियों का दर्जा साधुओं की तुलना में निम्नतर माना जाता है जबकि अपनी साधना और आराधना में साध्वियां साधुओं से कहीं आगे हैं। स्त्री किसी भी मायने में पुरुष से कम नहीं है। यहां तक कि नारायण की जन्म गाथा भी नारी है।

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