चेन्नई. ट्रिप्लीकेन स्थित तेरापंथ भवन में विराजित मुनि रमेश कुमार ने कहा जैन जीवन शैली पर प्रवचन में कहा जैन जीवनशैली नई समाज संरचना का मजबूत आधार बने।
असंयम, असहिष्णुता और भोगवाद के इस युग में भगवान महावीर द्वारा निरुपित श्रमणोपासक श्रेणी का आधुनिक संस्करण जैन जीवन शैली है। आचार्य तुलसी द्वारा प्रणीत यह ऐसी जीवनशैली है, जिसे व्यापक बनाने का प्रयास किया जाये तो जन जीवन शैली बन सकती है।
इसके नो सूत्र हैं सम्यक् दर्शन, अनेकान्त, अहिंसा, समण संस्कृति, इच्छा परिणाम, सम्यक् आजीविका, सम्यक् संस्कार, आहार शुद्ध व व्यसन मुक्ति और साधार्मिक वात्सल्य।
जैन जीवन शैली को अपनाकर नैतिक और धार्मिक समाज का निर्माण संभव है । जीवन शैली बदलने के लिए हृदय परिवर्तन और व्यवस्था परिवर्तन दोनों जरूरी हैं। श्रावक का जीवन रागात्मक होता है। राग पर वीतरागता का अंकुश होने पर ही स्वस्थ जीवनशैली हो सकती है।
मुनि सुबोध कुमार ने कहा चेतना को विशिष्ट धरातल पर लाने के लिए जप भी जरूरी है । जप से कर्म नष्ट होते हैं । दुर्बल मन को संबल बनता है।
विध्न बाधाओं को दूर करने का माध्यम भी जप है। जप साधना से साधक अपनी भावना को पुष्ट करता है। जप के लिए मन की एकाग्रता व परिवक्ता चाहिए । जप साधना में धैर्य की अपेक्षा रहती है।