यस यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि “आत्मबन्धुओ, जैन व जैनत्व नाम से नही जन्म से नही कर्म से कहलाता है परन्तु वर्तमान में ऐसा माना जाता है कि जैन कुल में जन्म ले लिया तो जैन बन गये। परन्तु भगवान फरमाते है कि जब तक जीवन में जैनत्व नहीं आयेगा तब तक कोई जैन नही कहलायेगा ।
नामे के आगे जैन लिखने से व्यक्ति मोक्ष में नहीं जा सकता। भगवान कहते है कि आचरण में जैनत्व झलकना आवश्यक है फिर वो किसी भी कुल का हो यदि उसके आचरण में जैनत्व है तो वह मात्र जैन ही नही सिद्ध भी बन सकता। आगमों को ग्रथित करने वाले गणधर जाति के ब्राह्मण थे जो प्रभु का मान मर्दन करने आये थे लेकिन प्रभु के चरणो में नतमस्तक हो भगवान की शरण में आ गये और भगवान की वाणी को सूत्रों में गूंथ कर दिये उन गणधरों का पुरुषार्थ हम पर उपकार बन गया।
आज उनकी वजह से जैन धर्म सुरक्षित है यदि सच्चा जैनी बनना है तो जैन धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखो जैनत्व को आचरण में अंगीकार करो। सच्चा जैनी संसार में रहकर भी तिर जाता है। संसार में रहकर सच्चा जैनी पल -2 चिंतन करता है कि अपने शरीर व अपने परिवार के लिए मुझे पल-2 पाप करना पड़ता है। वह संसार मुक्त होने के लिए छटपटाता रहता है।। ज्ञानी जन कहते है कि आचरण में यदि जैनत्व का समावेश हो गया तो आपको नाम के आगे जैन लिखने की आवश्यकता नही पड़ेगी क्योंकि जैन तो सार्वभौम धर्म है ।
भगवान कहते है सभी जीवों में सिद्ध होने की
क्षमता है। इसलिए व्यक्ति को अपने लक्ष्य को समझना जरुरी है क्योंकि लक्ष्य को समझ कर ही वह स्वयं का, दूसरों का भला कर पायेगा। संसार में सागर और आसमान विशाल लगते है पर ज्ञानी जन कहते है कि कर्म तो इनसे भी विशाल है क्योंकि अनादिकाल से कर्म आत्मा के साथ लगे हुए हैं।
कब कौन सा कर्म उदय से आ जाये वो छदमस्थ नहीं बता सकता है। ये सामर्थ्य सिर्फ सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवंतो में ही है। कर्म उदय में आने पर आत ध्यान, रौद्र ध्यान मत करो ।चाहे संकट हो, पाप कर्म का उदय हो, चाहे उपसर्ग हो उस समय धर्म-ध्यान करो क्योकि ये धर्म-ध्यान ही एक मात्र ऐसा सुरक्षा कवच है जो हर प्रकार से सुरक्षित रखता है। ज्ञानचंद कोठारी ने संचालन करते हुए आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।