कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ प्रांगण में आज रविवार तारीख 23 अक्तूबर को प.पू. सुधा कवर जी मसा के सानिध्य में मृदभाषी श्री साधना जी मसा ने उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन किया! सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि परमात्मा के तीर्थंकर बनने की यात्रा नयसार, मरीची, विश्वभूति, विमल, नन्दन एवं सिद्धार्थ जैसे अनेक भवों के बाद अब अंतिम चरण पर थी! खुद के कर्मों को खपाने में साढ़े बारह वर्ष लग गये! परमात्मा उत्तरोत्तर अपने गुणोस्थान पर पहुंच जाते हैं!
प्रभु को चार प्रकार के ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है! अब सिर्फ केवल्य ज्ञान की प्राप्ति होनी थी जिसके बाद किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती! देवों के अंदर वह शक्ति नहीं होती जो मनुष्य के अंदर होती है! देव सुन सकते हैं लेकिन आचरण नहीं कर सकते! स्वर्ग से नरक और नरक से स्वर्ग पहुंचना सिर्फ मनुष्य के लिए ही सम्भव है! उधर पूर्व भव वैर भाव के कारण परमात्मा को परास्त करने के लिए सोमिल ब्राह्मण 4440 विद्वान पंडित ब्राह्मणों को और इंद्र भूति, वसुभूति, जो वेद एवं शास्त्रों में पारंगत है, उन्हें आंमत्रित करता है! साथ ही अपने भाई अग्निभूति एवं वह वायूभूति को भी बुला लेता है!
इंद्र भूति और सोमिल ब्राह्मण को एक सपना आता है जिसकी वजह से उनका उत्साह बढ़ जाता है! 4440 विद्वान पंडित ब्राह्मणों के साथ यज्ञ की शुरुआत होती है! देवलोक से सभी देव प्रस्थान करके नीचे भूमि की ओर गतिमान रहते हैं उन्हें देखकर सोमिल ब्राह्मण बहुत खुश होता है कि वे सब उसी की तरफ आ रहे हैं! लेकिन देवों के विमान वहां पर रुकते नहीं है और आगे निकल जाते हैं! आश्चर्यचकित सोमिल ब्राह्मण देवों का पता लगाने अपने सेवक को भेजता है!
सेवक के वापस ना लौटने पर सोमिल ब्राह्मण खुद आगे बढ़ता और देखता है आश्चर्यजनक दृश्य! परमात्मा का सिंहासन, उनका दिव्य रूप, सोने चांदी हीरे रत्न जडित परकोटा, सभी देव और सभी प्रकार के पशु पक्षी और संसार के सभी जीवो को समझ में आने वाली देशणा सुनकर हतप्रभ हो जाता है! वह अपने दोनों हाथ जोड़कर भगवान को वंदन नमस्कार कर लेता है और उसे इसका भान ही नहीं रहता है! लौटकर सारा वृतांत इंद्रभूति को बताता है! इंद्रभूति परमात्मा को एक मायावी समझ कर उस माया को खत्म करने के लिए प्रस्थान करता है!
*क्रमशः*