चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा पर्यूषण पर्व जन-जन को जाग्रत करने वाला महापर्व है। जो व्यक्ति जाग्रत बन अपने पुरुषार्थ को जगा लेता है उसका सोया हुआ भाग्य भी जाग उठता है। जीव स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माता होता है। वर्तमान का पुरुषार्थ ही उसके उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है। सोने वाला साधक जब जाग जाता है तो वह गमों से किनारा कर लेता है।
मुनि ने तीन प्रकार की जागरणा का वर्णन करते हुए कहा कि साधक को अधर्म जागरण से विमुख होकर धर्म जागरण में प्रवृत्त होना चाहिए लेकिन जब तक उस स्थिति तक नहीं पहुंचे तब तक सुदर्शन जागरण द्वारा पाप कर्मों के बंध से बचने का प्रयास करना चाहिए।
मुनि ने अंतगड़ सूत्र का विवेचन करते हुए कहा मेघ जब बरसते हैं तब पर्वत पर तो उसका कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन उपजाऊ भूमि वर्षा के पानी को अपने भीतर समाहित कर फसल पैदा कर डालती है, उसी प्रकार आत्मार्थी भी भगवान की देशना सुनकर उसे आत्मसात् करते हुए अपने आचरण से मोक्ष फल की प्राप्ति कर लेते हैं।
जयकलशमुनि ने जन-जन को जागृत करने का, आया है पर्व ये प्यारा, यह पर्व पर्यूषण हमारा गीतिका प्रस्तुत की। मध्यान्ह में कल्पसूत्र का सरस वाचन करते हुए जयपुरन्दरमुनि ने भगवान महावीर के नयसार से प्रारंभ हुए 27 प्रमुख भवों का वर्णन किया। धार्मिक प्रतियोगिता भी आयोजित की गई।