सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
*पुज्य दर्शन मुनि मासा*-. 9 कारण से नींद नहीं आती है *चोर मोर, ढोर, योगी, भोगी, रोगी, धनवान, कुटुम्बवान, कर्जवान*
*धनवान*, ज्यादा धन हो तो दुःखी कि इतने धन का क्या करूँ ! पाप की क्रिया में धन खर्च करने में मन तैयार हो जाता है। उसको नींद नहीं आती। उसको *दर्शनावर्णीय कर्म* का उदय है। कर्मों का दोष है उसके कारण नींद आती है।
*कुटुम्बवान* – जो बड़ा परिवार हो, मेन सदस्य हो, चिंतित रहता है, पुरा घर चलाना है, घर में बड़े बैठे हे, छोटो को चिंता नहीं। बड़ा परिवार के मुख्य व्यक्ति को नींद नहीं आती है, सभी की चिंता रहती है।
*कर्जदार* > पहले कर्जा ले लेता है, उसको लोटाना है उस कारण उस जीव को नींद नहीं आती है। जहाँ तक नहीं दोगे तब तक चिंतन चलेगा |
*पुज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी मा. सा.*→ जीव संसार में परिभ्रमण करता है और कर्म का बंधन होता है ‘तीन कारण हे..1 छन्दोवणीया(स्वछंदता)
2 *अज्झोवणीया -* (अध्यवसाय) – अन्दर के विचार से जुडी भावना । विचार अलग-भावना अलग होती है। विचार दु:ख नहीं देते भावना दु:ख देती है, विचार हजारों आते हे तरंगे चलती रहती है जो विचार ठोस हो जाता है उसको कहते है *भावना।* अध्यवसाय को भावना कहते है, तरंगे दुःखदायी नहीं होती लहरों से विनाश होता है। अध्यवसाय को समझना !जो घनीभूत भावना में है डुब वह अध्यवसाय में चला जाता है।
*भावना दो होती है शुद्ध व अशुद्ध* जिस भावना में परमात्मा का स्मरण होता है, जिसमें कोई स्वार्थ नहीं है वह 1. शुद्ध भावना है । निःस्वार्थ भावना, कोई चीज की मांग नही।शुद्ध करोगे तो शुद्ध फल मिलेगा। धर्म के साथ मांग नहीं होती। मांग के साथ धर्म नहीं होता।
*अशुभ* अध्यवसाय से जीव जन्म मरण करता है कर्म बंध करता है। दिन भर में सैकड़ो ईच्छाये जगती है, ईच्छा को कहाँ गिनते हो? ईच्छाये पब भलीभूत हो जाते है तो *अध्यवसाय बन* जाती है। उस चीज को लिये बिना चेन प्राप्त नहीं होता ।
जब विचार ज्यादा करता है चिंता में (अध्यवसाय) चला जाता है। जिसमें डुब जाता है इसमें पता नहीं चलता है। जो चीज ज्यादा गहरी जाती है वह *तृष्णा* बन जाती है वह नीति व अनीति का सहारा लेता है, *झूठ* का रास्ता पकड़ा, झुठ के साथ *चोरी* जुड़ती है, चोरी करने वाला *गुस्से वाला क्रोधी* होता हे जो क्रोधी होता है वह *हिंसक* होता है हिंसा के बाद जीव कर्म बांधता है। क्यों बांध रहा है? ईच्छाओं में जी रहे हो इसलिए।
साधु जी ऐतीहासीक दृष्टि से किसी जगह देखने जाय तो देखे ! शोध की दृष्टि से देखे।
–इंद्रियो के विषय जब प्रवर्त्त होते हे तो वह राग द्वेष में उलझ जाता है अशुभ अध्यवसाय राग द्वेष से पैदा होता है इसमें जीव उलझ
जाता है,।
हमारा धर्म सीखाता हे *नमो* झुको। नमो शब्द केवल ज्ञान दे देता है यह मूल बीज केवल ज्ञान देने वाला है ओर हम मान कषाय मजबूत करने में लगे है।
🔰 9 बाते यह कभी नहीं बताना। *आयुष्य, घर की बात नहीं बताना ,धन नहीं बताना, मंत्र नहीं बताना, औषधी नहीं बताना, दान नहीं बताना, मान नहीं बताना, अपमान नहीं बताना।*
🔰 कर्तव्य समझकर मैं जीने वाला कर्म बांधता है दुर्भावना से नरक गति के मेहमानकी स्थिति बन जाती है।
हमारा अध्यवसाय किसी के प्रति सोचकर क्यों खराब करें? इसलिये भगवान ने *प्रतिसलिनता तप* बताया हे। अपनी इन्द्रीयों पर वश रखो। यह *अशुभ अध्यवसाय खराब कर्म बांधते हैं।* जो धर्म में जीता है उसको किसी की पंचायत नहीं ।
दूसरे के चिंता में हम अपने अध्यवासाय क्यों बिगाड़े, हमें कैसे जीना? हम जो करते हे अपने लिये करते है! *सारी धर्म आराधना मन को सुधारने के लिये है।* धर्म क्रिया कर रहे हो वहआत्म शुद्धि के लिये।
*भैंस पदमनी ने गहनो पहनाओं, वाकई जाने गहनाने*
*पेरनो नि जाने वा तो ओढनो नि जाने, वा तो फसरगी बाडा में ….*
हाथी को मलमल के निहलाया, वापस आया धुल सूंडड में करकर के वापस स्नान करता है। शिक्षा मिलती है कि हम यहाँ से वापस जाने के बाद समभाव में रहे। चिंतन करने से सुना हुआ स्थायी रहता है।
आज आपको पांच जनों की प्रशंसा करना हे