Share This Post

Featured News / Featured Slider / ज्ञान वाणी

जीव के जन्म मरण की संख्या असीमित है: जयतिलक मुनिजी

जीव के जन्म मरण की संख्या असीमित है: जयतिलक मुनिजी

गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने नार्थ टाउन के ए यम के यम स्थानक में कहा कि संसार अनादि काल से है जिसमें जीव का जन्म मरण भी अनादिकाल से हो रहा है। जीव के जन्म मरण की संख्या असीमित है जिसकी गणना में गणित भी फेल है। इसलिए भगवान ने कहा कि जीव का जन्म मरण अनादिकाल से है। मनुष्य गति को प्राप्त होना सरल नहीं है। प्रबल पुष्यवाणी से ये गति प्राप्त होती है। जिस प्रकार मोबाइल में बहुत सारे सिस्टम होते है पर जानकारी होने पर ही व्यक्ति उनका उपयोग कर सकता है।

उसी प्रकार आत्मा में अनेक शक्तियाँ है पर कर्मो के आवरण की वजह से व्यक्ति को उन शक्तियों का भान नही रहता। अनन्त भवों को जानने का साम्थर्य भी आत्मा में है। तप से ही जीव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। घाती कर्म को क्षय करने के बाद भी तीर्थकंर तप करते रहते है क्योंकि भगवान कहते है कि तप से ही कर्म निर्जरा है। जप तप से तेजस शरीर जागृत होता है तब वह लब्धि में परिवर्तित हो जाता है इस तेजो लब्धि का प्रयोग कर्म निर्जरा के लिए करना चाहिए ना कि दूसरों को कष्ट देना चाहिए।

पांच इन्द्रियों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि भगवान कहते हैं इन इन्द्रियों की आसक्ति से ही कर्मबन्ध है। ज्ञानीजन कहते हैं स्पर्श बहुत खतरनाक होता है। स्पर्श से कामाग्नि बढ़ती है। जो दुर्गति में ले जाती है। इसलिए भगवान कहते है कि संगठा नहीं होना चाहिए। यदि मन में वैराग्य है आत्म का चिन्तन उच्च है तो केवल दर्शन – केवल ज्ञान की प्राप्ति कहीं भी हो सकती है। जगह का महत्व नहीं आत्म चिन्तन का महत्व है। यदि मन संवर में है तो कर्म क्षय ही होता है। भगवान कहते है निदान नहीं करना क्योंकि निदान संसार बढ़ाता है। संसार में रहते हुए भी यदि आप अनासक्त भाव में रहते हो, संयम में रहते हो तो आपकी मुक्ति निश्चित है ऐसा भगवान ने फरमाया है। ज्ञानचंद कोठारी ने बताया कि दिपावली के उपलक्ष्य में स्थानक में हर रोज दोपहर को पुच्छिसुणं का जाप चल रहा है। सभी अवश्य पधारें।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar