चेन्नई. किलपॉक स्थित कांकरिया भवन में विराजित साध्वी मुदितप्रभा ने कहा हमारे दैनिक जीवन में अठारह पापों का सेवन होता है। प्राणतिप्रात पाप के अंतर्गत छह काय के जीवों की विराधना होती है। बैल हो या कर्मचारी जिनसे उनकी क्षमता से अधिक काम लिया जाता है। अधिक भार जीवों पर ढोना भी प्राणतिप्रात है।
दैनिक जीवन मे मृषावाद का सेवन करना अपने स्वार्थ या मजाक की दृष्टि से भी झूठ बोलना मृषावाद है। अदतादान पाप का अर्थ है वस्तु उसके मालिक की आज्ञा के बिना लेना, चोर की चोरी में सहयोग करना, चुराई हुई वस्तु लोभवश कम दाम में लेना, माप तोल में कम मापना व तोलना भी अदतादान है।
मैथुन, वेश्यागमन, परस्त्री व परपुरुष के साथ संबंध करना पाप के अंतर्गत आता है। परिग्रह पाप के अंतर्गत जो आवश्यक है उससे अधिक संपत्ति, वस्त्र आदि ममत्व भाव से रखना, उनमे मूच्र्छा भाव रखना परिग्रह है। परिग्रह के कारण माता-पुत्री, पिता-पुत्र में भी शत्रुता हो जाती है। क्रोध ऐसा पाप व जहर है जो स्वयं के साथ अन्य का भी घोर नुकसान कर देता है। आवेश में आकर अपशब्दों का प्रयोग संबंधों के विनाश का कारण बन जाता है।
मायाचारी के वशीभूत हम झूठ आदि अन्य पापों का सेवन करते हैं। आज कल धार्मिक क्रियाओं में भी माया का सेवन हो रहा है, इससे बचें। लोभ रूपी पाप अर्थात पद, प्रतिष्ठा, धन का लोभ, इसके लिए सच-झूठ का सेवन करना । आज कल दान के पीछे नाम व तप के पीछे लोभ की भावना बढ़ रही है।