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जीवों को तारने के लिए दो धर्म: जयतिलक मुनिजी

जीवों को तारने के लिए दो धर्म: जयतिलक मुनिजी

नार्थ टाउन में ए यम के यम स्थानक में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि भगवान ने भवी जीवों को तारने के लिए दो धर्म बताये है आगार धर्म और अनगार धर्म। आगार धर्म श्रावक और श्राविकाओं के लिए, अनगार धर्म साधु और साघ्वीयों का सर्वविरति धर्म‌‌। जो ममत्व के साथ रहते है कुछ छूट रखते है वो है आगार धर्म। जो बिना ममत्व के साथ रहते है वो है सर्वविरति धर्म। भगवान ने संसारी आत्मा को भटकने नहीं दिया वो कभी भी देशविरति धर्म से सर्वाविरति धर्म में आ सकता है इसलिए आगार धर्म का निरुपण किया। जिससे वो आगार धर्म को स्वीकार कर सके। आगार धर्म में भी 5 अनुव्रत तीन गुणव्रत और चार शिक्षावत का निरुपण कर दिया। अणुव्रत भी कम नहीं हैं। महाव्रत के बराबर है अणुव्रती, पाटे पर नहीं बैठता है कभी भी पाटे पर आ कर बैठ सकता है महाव्रती और अणुव्रती का मिलान रोज होता है।

भगवान ने श्रावक को भी तीर्थ में लिया है तीर्थ यानि श्रावक श्राविका, साधु साध्वी। श्रावक भी एक भव अवतारी बन सकता है। आज अणुव्रती है। अगले भव मे निश्चय महाव्रती बन सकता है । श्रावक भी मोक्ष मार्ग का अधिकारी है तीर्थकंर गोत्र का बन्ध कर करके मोक्ष में जा सकता है श्रावक भी तीर्थकंर बन सकते है तीर्थकंर चरम शरीर है कृष्ण भले ही अब नरक में है लेकिन अगले भव में तीर्थकंर बनेगें। कृष्ण सम्यकत्वी

जीव थे उन्होने भगवान को वन्दन करके, दर्शन करके दलाली कर के तीर्थंकंर गोत्र का उपार्जन कर लिया। एक व्रत को धारण करने वाला भी देवलोक जा सकता है ।अनुव्रत पालन करने वाला भी अपने भव को परिमित कर सकता है जो पाप नहीं करते है, नहीं करने वाले है, ऐसे पापों का त्याग नहीं करने के कारण निरन्तर कर्म बन्ध होता रहता है। ज्ञानी जन कहते है पहले ऐसे पाप का त्याग करो। फिर एक एक कदम बढ़ाते जावों। व्रतों को बढ़ाते जावों। अनादि काल से यह आत्मा पाप करती रही, कभी पाप से विच्छेद नहीं किया तो निरन्तर कर्म बन्ध होते रहते है।

हिंसा दो प्रकार की संकल्प जा हिसा, आरम्भजा हिंसा। संकल्प जा हिंसा जो संकल्पपुर्वक यानि प्लानिंग करके षडयंत्र करके हिंसा करता है। वो नरक का अधिकारी बनता है आरम्भजा हिंसा यानि आगार सहित हिंसा। जो अनजाने में हिंसा हो जाती है विवेक रखना। भगवान सर्वज्ञ सर्वदर्शी थे वो जानते थे कि कहाँ पर श्रावक को आगार रखना पड़ेगा, इसलिए उन्होंने पहले से ही आगार धर्म का निरुपण कर दिया। श्रावक का पहला अनुव्रत है प्राणतिपात वेरमण व्रत यानि अहिंसा व्रत।

अध्यक्ष अशोक कोठारी ने बताया कि जयमल जयंती के प्रथम दिवस में कल 30 तारीख शनिवार को नार्थ टाउन में ‘पुज्य गुरुदेव जयमल जी महाराज साहब के जीवन के दृष्टांत’ पर भाषण प्रतियोगिता रखी गई है ।

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