जयतिलक जी म सा ने जैन भवन, रायपुरम में प्रवचन में बताया कि जीवों के संसार से तिरने के लीए जिनवाणी प्ररूपित की! दो प्रकार के धर्म का निरूपण किया। साधु के लिए पंच महाव्रत, एवं गृहस्थ के लिए पंच अणुव्रत दिये है। अणुव्रत से जीवन पवित्र बन जाता है। श्रावक जीवन का लक्ष्य अष्ट कर्मो से निव्रति होता है। श्रावक मात्र, कर्म को दोष देता है, निमित्त को दोष देने वाला वैर बांध कर लेता है। व्रत नहीं लिया हो तो मनुष्य अनैतिकता मे धनार्जन करता है जो साथ पाप भी लाता है!
व्रत प्रत्यावान ग्रहण करने वाला अनंतानुबंधि कषाय अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय से तीन दर्शन मोहनीय से छुट जाता है। व्रत प्रत्याखान कर ले तो जितनी मर्यादा रखी है उतना ही कर्म बंध होता है शेष पापो से बच जाता है उसका जीवन नैतिक एवं श्रेष्ठ बन जाता जाता है। है। जीवन का परम लक्ष्य व्रत धारण करना ! श्रावक की श्रेणी में आना भी उत्कृष्टता है! वह पंचम गुणस्थान में आ जाता है! जैन धर्म का परम लक्ष्य ही व्रत पचखान धारण करना। प्रसंग चल रहा था. दूसरे अणुव्रत का संसार व्यवहार में बाँधा न आये इसलिए छोटे झूठ का आगार दिया। किंतु इन छोटे झुठ से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। सत्य बोलने की आदत स्वयं में डाल दो ताकि संतान भी सत्य बोलना सीखे। उनके आचरण में सत्य का अवतरण हो।
इससे आपका और उन बच्चों का भी जीवन सुन्दर प्रसंशनिय बनता है। सत्य प्रसंग- एक बच्चा देरी से घर आया। तो पीता ने दे पूछा क्यों देरी हो गयी। पुत्र ने कहा पढ़ने के लिए मित्र के घर गया। पिता ने फोन कर पूछा तो मित्र ने कहा मेरे घर पर ही पढाई कर रहा है। कल आयेगा। पिता झूठ समझ जाते हैं। बच्चे ही झूठ बोलेंगे तो भविष्य कैसा होगा। ऐसे परिस्थति से बचने के लिए बच्चों को सत्संग में लाओ उन्हें छोटे छोटे व्रत प्रत्याख्यान दिलाओं !
वह लड़का बड़ा होकर कुसंगत में पड़कर गलत करता है! पकड़ा जाता है! राज दरबार में पिता को साक्षी के लिए बुलाते है। पिता ने सत्य बोलने का निर्णय लिया। साथ गवाही से राजा ने प्रसक होकर एक बार बचने का मौका दिया ! पुत्र ने क्षमायाचना की ! सत्य मार्ग की राह पकड़ी।एक बार गलती करे तब ही सुधार कर लो। अन्यथा वह नासुर बन जाता है! छोटे में ही सुधार कर लो। अच्छे कर्म करके जाओ तो जाने में मजा है अन्यथा सजा है।
व्रत प्रत्याख्यान इहभव परभव को संवारती है। सत्य के समान मीठी वाणी दूसरी नहीं! सत्य बोलने के समान मीठी वाणी दूसरी नहीं। कर्म बंध नहीं होते हैं। वह मुक्त हो जाता है। सत्य का संसार में महत्व है! सत्यवादी वीर सत्य वाले होता है। कल्याणकारी होता है झूठ बोल कर दूसरो को फसाने से निकाचित का बंध हो होता है! कन्नलिए के बारे में हो चुका है जो जीवों गोवालिए का प्रसंग चल रहा था। जैन वह है जो जीवों की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर देता है!
एक जैन भाई लाखों करोडों का खर्च कर के कसाई की दुकान खरीदता है। दूसरे जैन जिंदा करते हैं। किंतु वह दुकान खरीद कर ताला लगा देता है। आज संसार में जैनों की कोई गौशाला चल रही है।
‘भोमालिए:- भूमि संबधी झूठ नहीं बोलना। हर संसारी व्यक्ति का एक
स्वप्न होता है कि अपना एक घर हो वह बड़ी मुशकिल से जमीन खरीदना है अगर उसके साथ दगा हो जाय तो उसे भारी कष्ट सहना पड़ता है! मरण तुल्य कष्ट होता है! अत: किसी के साथ ऐसा दगा न करो ! आगम में एक प्रसंग आता है! एक किसान के पास दो बैल थे जो रात में दोनो बात कर रहे थे। एक बैल दूसरे को कहा मेरा कर्ज चुक गया ! मैं चला जाऊँगा। दूसरा बैल कहता है मेरा दस हजार स्वर्णमुद्रा का कर्ज बाकी! वह कहता है भोज राजा के हाथी से मेरी भिंडत कराए तो मैं जीत कर इसे 10 हजार स्वर्ण मुद्रा दिला दूंगा !
सबेरे जाकर एक बैल मृत मिला। वह किसान राजा के पास जाकर चुनौती देता है! युद्ध प्रारम्भ युद्ध होता है। हाथी और बैल की नजर मिली! हाथी पहचान जाता है मैं “इसका कर्जदार हूँ! बैल ने सींग मारा और हाथी को पछाड़ दिया! बैल जीत कर अपना कर्जा चुकाता है। तीनो काल में अपना कर्जा चुकाना ही पड़ता है। अत: भूमि संबधी झूठ कभी नहीं बेलनी चाहिए। अनर्थ के पाप से बचों ! दूसरों की हाय से बचों वर्ना यह हाय आपको बर्बाद कर देंगी! और कर्ज तो कभी न कभी चुकाना ही पड़ेगा ! सत्य आचरण करे! अपनी आत्मा का उत्थान करो।
संस्कार शिविर का आयोजन किया गया । करीब 101 जनों ने भाग लिया। सभी को संघ की और से इनाम दिया गया । श्रीकालाहस्ती से संघ लेकर पधारें पदमचंद जी बाफणा का सम्मान गौतमचंद खटोड ने किया। संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी प्रचार प्रसार मंत्री ज्ञानचंद कोठारी ने दी ।