किलपाॅक में विराजित आचार्य तीर्थ भद्रसूरिश्वर ने कहा जीवों के प्रति सम्यक् व्यवहार श्रेष्ठ धर्म है। जगत के सभी जीवों के प्रति प्रेम व मैत्री की भावना होनी चाहिए। जहां भी हम चूकते हैं वहां अधर्म होता है। सब तत्वों का हर जीव के साथ संबंध है। जीव के साथ सम्यक् व्यवहार किया तो पुण्य का बंध होगा।
उन्होंने कहा दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। दान किसी जीव को दिया जाता है तब उसके साथ संबंध बनता है, यह उसका सम्मान है। महापुरुष कहते हैं एक जीव के प्रति की हुई उपेक्षा व अनादर तीर्थंकर के प्रति अनादर जैसा है, यह बड़ा पाप है। जीवों के प्रति प्रेम और मैत्री ही सच्चा अध्यात्म का मार्ग है। यही साधना का मार्ग है।
उन्होंने कहा जब कभी आपको कष्ट आता है तो समझना अशुभ कर्मों का उदय हुआ है। जीवन को निर्मल बनाना है तो कोई जीव के प्रति वैर, द्वेष व तिरस्कार की भावना नहीं रखना, अन्यथा वे ही कंटक, अन्तराय, विघ्न बनकर आपके सामने आएंगे। जीवन में आचरण, दया, करुणा, दान आदि की शुद्धता कठिन लक्ष्य है।
उन्होंने कहा कर्म परिणाम केवल काल परिणति, लोकस्थिति व भवितव्यता की सुनते व मानते हैं। जब कर्म अनुकूल नहीं है तो आपका कुछ ठीक नहीं हो सकता। उन्होंने कहा जो कार्य सरल व करने योग्य है उसमें प्रमाद करना अपराध है। असंभव और न करने योग्य कार्य में पुरुषार्थ करते हो तो अपनी ऊर्जा व्यर्थ होगी।
कोई भी कार्य करने से पहले चिंतन करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह कार्य मैं कर सकूंगा या नहीं। यदि आपको विश्वास है तो शक्ति व परिस्थिति को देखकर उस कार्य में हाथ डालना चाहिए।
उन्होंने कहा यदि पुण्य जागृत है तो कोई दुर्जन कितना भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो भी कुछ नहीं होगा। वेश्वानर यानी क्रोध से छुटकारा पाना है तो उसका एक ही उपाय है क्षमा।
प्रवचन के दौरान किलपाॅक संघ के तहत मुनिसुव्रत महिला सामायिक मंडल, मुनिसुव्रत महिला वैयावच्च मंडल और मुनिसुव्रत महिला संगीत मंडल का गठन आचार्य भगवंत के मंगलाचरण के साथ हुआ।
आचार्य ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जिस उद्देश्य से मंडल की स्थापना हुई है उसमें अपनी सूझबूझ व शक्ति का प्रयोग हो और संघ व शासन का गौरव बढे।