चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने पर्यूषण पर्व की शुरुआत पर कहा हमारे कर्तव्य का बोध कराने के लिए और प्रमादवश सोई हुई आत्मा को जाग्रत करने के लिए पर्यूषण पर्व आया है। उन्होंने कहा पर्युषण में तीन कार्य करने योग्य है आत्मा को याद करना, आत्मा को साफ करना और आत्मा के नजदीक रहना।
पर्युषण में श्रावक के पांच कर्तव्य है अमारि प्रवर्तन, साधर्मिकवात्सल्य, क्षमापना, अ_म तप और चैत्यपरिपाठी। अमारि का तात्पर्य है हिंसा का त्याग करना यानी अहिंसा। यह धर्म का मुख्य लक्षण है। उन्होंने कहा हिंसा दो प्रकार की होती है दूसरे जीवों की हिंसा और अपनी आत्मा की हिंसा। हमें आम जीवन में इन दोनों हिंसा से बचना चाहिए।
हमारी ऐसी प्रवृत्ति है कि दूसरे जीवों की हिंसा होती या नहीं, आत्मा की हिंसा हो जाती है। हमारे हृदय में सभी जीवों को अभयदान देने की भावना होनी चाहिए। जीवमात्र को सबसे प्रिय चीज अपना जीवन है। यदि आपको अपना जीवन प्रिय है तो दूसरों का जीवन छिनने का अधिकार नहीं है।
आत्मा की हिंसा यानी मन में आर्तध्यान, दुर्ध्यान, ईर्ष्या, क्रोध, मान, मोह, लोभ। हमें यह हिंसा से बचना अत्यंत जरूरी है। पुद्गल में रति, अरति, ममत्व करना भी आत्मा की हिंसा है।
उन्होंने कहा आपके पास हृदय और मस्तिष्क दोनों हैं। विज्ञान ने मस्तिष्क को महत्व दिया है लेकिन अध्यात्म दुनिया में हृदय को महत्व दिया गया है। आत्मा की साधना कोमल हृदय में ही संभव है। हृदय की कोमलता हमें मिलेगी जीवों के प्रति प्रेम से। हमें ज? के प्रति जितना प्रेम है, जीवों के प्रति नहीं।
हमें हमारे संस्कारों की रक्षा करना भी जरूरी है। बच्चों में जैन धर्म के संस्कार आने चाहिए ताकि वे आगे बढक़र अहिंसा का पालन कर सके। सोमवार को मुनिसुव्रत स्वामी जिनबिम्ब निर्माण के चढ़ावे बोले गए।
स्वर्ण टांकनी का चढावा जीवीबाई मेघराज साकरिया परिवार, रजत टांकनी का कमलाबाई पारसमल श्रीश्रीमाल परिवार व कांस्य टांकनी का संघवी धन्नालाल धर्मचंद परिवार ने लिया।