जैन साध्वियों ने बताया पाप करनेे में अच्छा लगता है लेेकिन उसके फल से भगवान भी आपको नहींं बचा सकते
Sagevaani.com @शिवपुरी। कमला भवन में चार्तुमास कर रहीं प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी,ओजस्वी प्रवचन प्रभाविका साध्वी नूूतन प्रभा श्रीजी, तपस्वी रत्ना साध्वी पूूनम श्रीजी और मधुर गायिका साध्वी जय श्रीजी और साध्वी बन्दना श्रीजी के प्रवचनों की धूम मची हुई हैे।
प्रवचन में साध्वी बन्दना श्रीजी जहांं श्रावकोंं के 21 गुणों पर विस्तार से प्रकाश डाल रहीं है वहीं साध्वी नूतन प्रभा श्रीजी 18 पापों से बचने के उपाय बता रहीं हैं। गुरुणी मैया साध्वी रमणीक कुंवर जी अनसुलझे तथ्यों को बखूबी स्पष्ट कर रहीं है। वहीं अपने मधुर भजनों से साध्वियों के प्रवचनों में रौनक लाने का काम साध्वी जय श्रीजी और साध्वी बन्दना श्रीजी कर रहींं हैं। वहीं साध्वी पूनम श्रीजी की तपस्या की धूम से पूरा समाज प्रभावित है। गुरु वार को प्रवचनों में साध्वी बन्दना श्रीजी ने बताया कि यदि आपको अपने जीवन को सुखमय बनाना है तो एक ही सूत्र है पुण्य से अर्जित धन को पुण्य में ही खर्च करो। साध्वी नूतन प्रभा श्रीजी ने बताया कि पाप करने में अच्छा लगता है लेकिन जब उसका फल आता हैे तो उसके परिणाम भयानक होते है तथा भगवान भी उसके प्रभाव से आपको नहीं बचा सकते।
प्रारंभ में साध्वी जय श्रीजी ने युवाचार्य महेन्द्र ऋषि जी के श्री चरणों को नमन करतेे हुए भजन गाया कि जय जय बंंदन करते चरणो में बंदन। साध्वी बन्दना श्रीजी ने इस बात पर दुख व्यक्त किया है कि आज के माता पिता अपने बच्चों को संस्कारित करना भूल गये है। छोटे छोटे बच्चों को मोबाईल पकड़ा देते है इससे जीवन में क्या विकृति आती है इसका उन्हे भान नहीं रहता है। चारो तरफ सेे हम पापों को आमंत्रण दे रहे हैं। उन्होंंने कहा कि यह बात ध्यान रखो जब तक आपकेे पुण्य है आप बचे रहेंंगे लेकिन जब पुण्य की पूँजी खत्म हो जायेेगी तो बेटा भी आपका दुश्मन हो जायेगा।
उन्होंने राजा श्रेणिक का उदाहरण देते हुए बताया कि जब उनका पुण्य समाप्त हुआ तो उनके पुत्र कोणिक ने उन्हें जेल में डाल दिया और जब इससे भी उसका मन नहीं भरा तो वह प्रतिदिन उन्हें कोड़़े मारने लगा। साध्वी जी नेे कहा कि हमें हर पल अपनी पुण्य की पूँजी को बढ़़ाने में ध्यान लगाना चाहिए। साध्वी नूतन प्रभा श्रीजी ने 10वे और 11वे नम्बर के पाप राग और द्वेष की चर्चा करते हुए कहा कि यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैंं। जहां राग है वहीं द्वेष है। साध्वी जी ने बताया कि हमें धन दौलत, पति पत्नि,यश,प्रतिष्ठा और पद के प्रति राग है और इन रागों सेे मुक्त होकर हमें अपने कदम वैराग्य और वीतरागता की ओर बढ़ाना चाहिए।
मनाया गया युवाचार्य महेन्द्र ऋषि जी का जन्मदिन
गुरुवार को साध्वी रमणीक कुंवर जी के निर्देशन में युवाचार्य महेन्द्र ऋषि जी का 56वां जन्मदिवस मनाया गया। इस अवसर पर धर्मावलंबियों ने उपवास,एकासना, आयमबिल आदि तपस्या कर युवाचार्य को अपनी आदरांजलि अर्पित की। धर्म सभा में श्रावक और श्राविकाओं ने दो दो सामायिक भी की। इस अवसर पर गुणानुवाद सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए साध्वी नूतन प्र्रभा श्रीजी ने बताया कि युवाचार्य महेन्द्र ऋषि जी का जीवन हम सब के लिए मिसाल और अनुकरणीय है। महज सात साल की उम्र मे उन्हे वैराग्य हुआ और 15 वर्ष की आयु में सन् 1982 में उन्होंनेे आचार्य सम्राट आनंंद ऋषि जी महाराज से दीक्षा ग्र्रहण की।
वह अनेक भाषाओं के ज्ञाता थेे और उन्होंने जैन आगमों का विशद अध्ययन किया था। वह शांति की प्रति मूूर्ति हैं और उन्हें सन 2015 में 500 जैन साधू और साध्वियों तथा एक लाख लोगों की उपस्थिति में आचार्य शिवमुनि ने उन्हें युवाचार्य घोषित किया। उनके प्र्रवचन और भजन गायन बहुत प्रभावी है तथा वह जिन शासन की सेवा कर रहेे हैं। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने युवाचार्य महेन्द्र ऋषि जी के जीवन से जुड़े कई संस्मरणों को सुनाते हुए उनकी उच्चतर साधना की कामना की तथा कहा कि वह वीतरागता के शिखर की चोटी पर पहुंचेंं।