श्री सिद्धाचल स्थूलभद्र धाम में उपधान तप आराधना में आज श्री स्थूलभद्र कृपा प्राप्त पू आ श्री चंद्रयश सूरीश्वरजी महाराजा प्रवतर्क प्रवर श्री कलापूर्ण विजयजी म सा ने प्रवचन सभा को सम्बोधित करते कहा जीवन यात्रा में व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता हर व्यक्ति का कोई न कोई मित्र तो अवश्य होता है।
अपने सुख दुःख की बात करने जीवन में हर एक को एक सच्चे मित्र की आवश्कयता होती है। मित्र तो बहोत मिलते है पर आत्मा की चिंता करनेवाला मित्र आपके पास है क्या? अध्यात्म जगत में वैसे मित्र को कल्याणमित्र कहते है जो आत्म हित में सहायक बने जिव को अहितकारी प्रवृति से रोके और हितकारी जीवन की सलाह दे।
कल्याणमित्र के संग हमारे जीवन मेसे दोषो का नाश और गुणो का विकास होता है। थाली मित्र, ताली मित्र, प्याली मित्र तो हमारे बहोत है जो भौतिक सुखो की चिंता करते है परन्तु हमे तो आत्मा की सदगुणो की चिंता करनेवाला कल्याणमित्र चाहिए। हे हमारे पास कल्याणमित्र?
वर्तमानकाल का व्यक्ति संसार के सुख और भौतिकता के पीछे ही मगन है। आत्मा की चिंता तो किसी को भी नहीं है प्रभु के शासन को प्राप्त श्रावक का जीवन देह क्रेन्द्रित नहीं अपितु आत्म क्रेन्द्रित होता है। उसे शरीर से ज्यादा आत्मा के हित अहित पुण्य पाप की चिंता रहती है।
कल्याणमित्र वही बन सकता है जिसका स्वः जीवन सदाचारमय हो जो स्वयं न्याय निति युक्त हो जो वीतराग परमात्मा की आग्न्या माननेवाला हो जो सन्मार्ग पर चलता हो वैसा कल्याणमित्र ही दुसरो को सन्मार्ग में ला सकता है।
जीवन में मित्र का चयन करो तब एक बात हमेशा याद रखना की जीवन का पतन करे वैसा नहीं अपितु उत्थान करे वैसा मित्र चाहिए। जो कल्याणमित्र ही हो सकता है जीवन में किसी के अच्छे सद्गुणो की अनुमोदना करना भी बड़ा गुण है। आज का व्यक्ति किसी का दोष तो तुरंत देख कर सबको बताता है पर महान व्यक्ति दुसरो के दोष नहीं पर सद्गुणो का ही गान करता है। अतः हमारी दृस्टि अच्छाई पर जानी चाहिए नाकि बुराई पर।