जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भक्ति का महत्व प्रतिपादित करते हुए भक्ति साधना का सर्वोतम मार्ग बतलाया की भक्ति से हमारे मन वचन काया के रसायनो मे परिवर्तन होता है! जिससे मानसिक शारीरिक आधी व्याधीया भी समाप्त हो जाती है!आधुनिक विज्ञानिको ने भी इस बात को स्वीकार किया है! महावीर ने इसे भाव ओशध रूप मे स्वीकारा है! जब सम्पूर्ण प्रकार की ओशधीया भी कार्य नहीं कर पाती तब मन के परिणाम भाव लाभ देते है!
अस्वस्थ को स्वस्थ बना देते है शत्रु के प्रति मित्रता के भाव जागृत होते है परिणामत : शत्रु मित्र बन जाते है!जैसे कोई व्यक्ति निम्बू या इमली का नाम मात्र स्मरण करता है तो उसके मुँह मे खट्टा सा स्वाद उस पदार्थ का आना प्रारम्भ हो जाता है! यदिपी हमने उस पदार्थ को ग्रहण नहीं किया है! इसी प्रकार परमात्मा का स्मरण करते ही स्वाद रूप शुद्ध भावनाएं मन मे प्रारम्भ हो जाती है! शब्दों की ध्वनि मे जबरदस्त ऊर्जा रहती है जिसका तत्काल असर प्रारम्भ हो जाता है!
हमारे जीवन भर के सारे सम्बन्ध इसी वाणी के बल बुते पर चल रहे है! आवश्यकता है इस वाणी का हमेशा विवेक पूर्वक इस्तेमाल करने की! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा आदिनाथ भगवान भक्ति स्वरूप भक्तामर जी का मंगलगान गाया गया आचार्य मानतुंग जी ने इसमें अनेकानेक मन्त्र यन्त्र तन्त्र सूचक शब्द व ध्वनि का प्रयोग किया है! महामंत्री उमेश जैन द्वारा सूचनाएं व हार्दिक स्वागत किया गया।