नार्थ टाउन में जयगच्छीय गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि आत्मा बन्धुओ, जैन दर्शन में अभयकुमार का एक महत्वपूर्ण स्थान है विलक्षण बुद्धि वाले, राज कुल में होते हुए भी वे हर प्रवृति में धर्म का समावेश होता थाl जिससे उनके निकाचित कर्म का गृहस्थ होते हुए भी धर्म का समावेश अपने जीवन में करो जिससे भवयत्व और सम्यक्त्व दोनो सुरक्षित रहे। ज्ञानी जन कहते हैं कि जीवन में सदैव धर्म का समावेश रखो। धर्म शब्द का अर्थ ध यानि धारण करना ‘र यानि रक्षा ‘म’ यानि मरण-मोह धर्म छोड़ने योग्य, दिखावट, सजावट व मिलावट करने योग्य नही है। धर्म का सही अर्थ जानने से ही धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होगी। धर्म धारण करने वाला दुर्गति से बचता है। जन्म-मरण की श्रृंखला को नष्ट करता है शास्वत सुख प्रदान करता है। जैसे चौकीदार सुरक्षा करता है। वैसे ही धर्म सदा काल रक्षा करते हुए जन्म मरण से मुक्ति कराता है। धर्म सदैव हर प्रवृत्ति में झलकना चाहिए क्योंकि हर वर्ग हर जाति का व्यक्ति अच्छाई को अपनाता है। यदि हमारी प्रवृति में धर्म नही दिखाई देगा तो जानवर के समान हो जायेगा।
संसारिक प्रवृति करने के बाद भी यदि मनुष्य धर्म को सदैव धारण किये रखता है तो भव सागर से पार हो सकता है। पर जानवर मोक्ष में नहीं जा सकता। धार्मिक क्रिया नही कर सकता इसलिए मानव जीवन को सार्थक बनाओ। आज पद पाने के लिए कितने ही पाप करते हैं। पद की आसक्ति जीव को दुर्गति में ले जाती है ऐसे पद नरक का द्वार खोलते हैं। यदि पद की कामना करनी है तो पंच परमेष्ठि के पांच पदो की कामना करनी चाहिए जिससे जीव सदैव के लिए मुक्त होने की ओर अग्रसर हो सके। सासांरिक पदो के झूठ कपट, माया, छल, दिखावा करना पड़ता है जबकि पंच परमेष्ठि पद बिना कषाय पाप, माया, कपट के प्राप्त होता है। इसलिए कामना करनी है तो पाँच पदो की कामना करो ज्ञानीजन कहते है कि सासांरिक पदो की कामना मत करो ये कामना दुःख देने वाले और पाप को बढ़ाने वाले है। भगवान कहते है या तो पचं परमेष्ठि बनों या वहां परमेष्ठि के सच्चे उपासक बन जाओ।
जैसे अभयकुमार ने राज पद की बजाय पंच परमेष्ठि के पांचवे पद की अभिलाषा की। धर्म स्थान में सामायिक में सिर्फ धर्म चर्चा करनी चाहिए सांसारिक बातों को मत करो। भगवान कहते है यदि 10 धर्माचरण की बात कर लो और यदि उसमे कोई एक बात भी यदि स्वीकार कर ली तो उसका भव भ्रमण कम हो जायेगा। भगवान कहते है पापी जीव का सोना अच्छा और धर्म करने वाले व्यक्ति का जागना अच्छा। भगवान कहते है प्रथम प्रहर तक जोर से बोल कर स्वाध्याय कर सकते हैं पर दूसरे प्रहर से सुर्योदय तक जोर से बोल कर स्वाध्याय न करे। स्वाध्याय में, धर्म क्रिया में विवेक न होने पर वह क्रिया पापयुक्त हो जायेगी। इसलिए स्वाध्याय भी यतना से करो श्रावक पने में भी यदि आवरण मजबूत है तो वाणी भी प्रभावशाली होती है। संस्कार का अर्थ है दोष को दूर करना और अच्छी प्रवृत्ति को आवरण में लाना। अध्यक्ष अशोक कोठारी ने संचालन किया।