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ज्ञान वाणी

जीवन में विनय भाव को आत्मसात करें: साध्वी कुमुदलता

जीवन में विनय भाव को आत्मसात करें: साध्वी कुमुदलता

चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी डॉ. कुमुदलता ने कहा जीवन में मानव को विनम्र बनना चाहिए। जितना विनम्र बनेंगे और झुकेंगे उतना ही प्राप्त करते चले जाएगे। जिस प्रकार कोई फूल कितना ही सुंदर क्यों न हो यदि उसमें सुगंध नहीं तो उसकी कोई कीमत नहीं होती।

ठीक उसी प्रकार यदि मनुष्य में कितने ही गुण क्यों न हो यदि उसके जीवन में विनय या नम्रता नहीं है तो वह जीवन की पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकता। आश्चर्य की बात है कि मनुष्य फूल तो सुगंध वाला ही पसंद करता है मकान भी स्वयं के ही रहने के लिए बनाता है किन्तु जीवन में नम्रता को स्थान नहीं दे पाता।

झुकना एक ऐसी क्रिया है जिससे हृदय के द्वार खुल जाते हैं। झुकना मात्र सिर को झुकाना नहीं है जीवन का लक्षण ही झुकना है। जो शक्ति झुकने से प्राप्त होती है वह धन, राजनीति अथवा पद-प्रतिष्ठा से प्राप्त नहीं होती।

जितना किसी के पास धन होगा उतनी ही उसकी आत्मा सिकुड़ जाएगी। जितने बडे पद पर पहुॅंचोगे उतनी ही भावनाएं कठोर होती चली जाएंगी। बेईमानी, धोखाधड़ी, पाखंड-झूठ, फरेब आदि करके सत्ता या पद की प्राप्ति तो की जा सकती है लेकिन यह एक गहनतम तथ्य है कि हम जितना झुकते हंै उतने ही जीवंत हो सकंेगे।

जो झुकना जानता है वह कभी पराजित नहीं हो सकता। जीवन का यह सत्य नियम है कि झुककर ही इंसान आगे बढ़ता है। झुकने से अभिप्राय दबकर चलना या डरकर चलना नहीं है।

साध्वी ने महाभारत के युद्ध का उदाहरण देते हुए बताया कि जब कुरुक्षेत्र में कौरव और पाडंवों की सेना आमने सामने थी तब धर्मराज युधिष्ठिर अपने रथ से उतरकर कौरव सेना की ओर जाकर भीष्म, द्रोणाचार्य और कुलगुरु कृपाचार्य का वंदन कर युद्ध की अनुमति और आशीर्वाद मांंगा। तीनों ने ही उनको आशीर्वाद प्रदान किया। यह होती है विनय की भावना।

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