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जीवन में मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक:

जीवन में मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक:

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र भद्रसूरीश्वर ने कल्पसूत्र का विवेचन करते हुए कहा कल्प यानी मर्यादा। हमारे जीवन के तीन आधार हैं शरीर, आत्मा और मन। जीवन में मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक है।

समग्र प्रकृति नदी, समुद्र, सूर्य, तारे सब अपनी मर्यादा में रहते हैं। एकमात्र मनुष्य कषायों के अधीन होकर मर्यादा भंग कर देता है। जिससे उसके जीवन में आंधी तूफान पैदा हो जाता है। हमारे अन्दर तीन माइनस पॉइंट है गलत अभ्यास, गलत संस्कार और गलत अनुराग। उन्होंने कहा कल्प के विभिन्न अर्थ है मर्यादा, आचार, नीति, विधि और समाचारी।

समाचारी और सिद्धांत में यह फर्क है कि समाचारी समय के अनुरूप बदली जा सकती है, यह अस्थिर व अध्रुव है, वहीं सिद्धांत एक निश्चित नियम है, ध्रुव व स्थिर है। उन्होंने कहा समाचारी दस प्रकार की है पहला आचोलक्य कल्प यानी अल्प मूल्य वाले मर्यादित वस्त्र धारण करना।

दूसरा औदेशिक कल्प यानी आहार की मर्यादा। तीसरा शैयातर कल्प यानी जहां साधु ठहराते हैं उसका मालिक, उसके यहां से गोचरी, पानी कल्पन नहीं है। चौथा राजपिंड कल्प यानी राजा के घर की गोचरी का त्याग। पांचवा कृतिक कर्मण कल्प यानी वन्दन व्यवहार।

छठा ज्येष्ठ कल्प यानी छोटे बड़े का व्यवहार। सातवाँ स्थान कल्प यानी साधु संतों के नौ कल्पीय विहार बताए है। आठवा वृत कल्प, नवमा प्रतिक्रमण कल्प यानी अतिचार करने के लिए प्रतिक्रमण करना और दसवां पर्यूषणा कल्प यानी मन को मर्यादा में रखकर आत्मा के नजदीक ले जाना।

ये मूलत: साधुओं के लिए है लेकिन श्रावक को भी इनका अनुसरण करना चाहिए। गुरुवार को महावीर जन्म वाचन के अवसर पर पालना अपने घर ले जाने का चढ़ावा हुआ जिसे संघवी प्रकाशचंद मंगलचंद राजकुमार अरुण ओस्तवाल परिवार ने लिया।

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