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ज्ञान वाणी

जीवन में प्रमाद ही सबसे बड़ा शत्रु: ज्ञानमुनि

वेलूर. हर व्यक्ति के जीवन का एक ही उद्देश्य मुक्ति है। मुक्ति की इ’छा रखने वाले व्यक्तियों को शरीर, मन, बुद्धि एवं भौतिक पदार्थों होने वाले आसक्ति को त्याग कर सब कुछ बहुजन हिताय मेंं देना होगा। जिनके हृदय में परोपकार समाया रहता है उनके लिए इस संसार में कोई भी पदार्थ दुर्लभ नहीं है।

दूसरों की भलाई करने में ही अपनी भलाई समाई होती है। अत: मानव को हमेशा भलाई एवं धर्म कार्य में समय व्यतीत करना चाहिए। यही जीवन का मूल उद्देश्य है। मानव प्रमाद में अपना जीवन बरबाद न करें यह कहना है वेलूर के शांति भवन में चातुर्मास कर रहे ज्ञानमुनि का।

उन्होंने राजस्थान पत्रिका के साथ अपने अनुभव बांटते हुए कहा मानव को जिनवाणी श्रवण से पुण्य-पाप एवं हित-अहित का ज्ञान होता है और सुनने से ही हित-अहित में भेद का बोध होता है, अत: धर्म सुनकर हितकारी व श्रेयकारी आचरण करना चाहिए। जिनवाणी सदा कल्याणी व भ्रम और अज्ञान का निवारण करने वाली है।

कुछ दिन के जीवन में इस कल्याणी वाणी को जीवन में ढालें और प्रमाद में समय न खोएं। मनुष्यों को धनवान बन जाने पर भी अपनी सरलता एवं विनम्रता नहीं छोडऩी चाहिए। धन बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं है। धन साधन है साध्य नहीं, मार्ग है मंजिल नहीं।

धन स्वयं के काम आए तो अंधेरा एवं सबके काम आए तो उजाले के समान है। मानव को व्यसनमुक्त जीवन जीना चाहिए। धर्म का उद्देश्य है जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था एवं रोग से पीडि़त हर जीव को मुक्त कर आत्मा को उसका मूल स्वरूप दिलाना है और सुख-शांति व समृद्धि से जीवन जीना सिखाना है।

किसी को पीड़ा न देना,जीवदया सहित लोगों के लिए पीड़ारहित एवं व्यसनमुक्त जीवन जीना ही मोक्ष का मार्ग है।

प्रत्येक व्यक्ति को धर्माराधना जरूर करनी चाहिए। धर्म ही जीवन का मूल लक्ष्य है यह कभी नहीं भूलना चाहिए। हमारे कर्म व धर्माराधना ही व्यक्ति के साथ जाते हैं।

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