जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में जयधुरंधर मुनि ने श्रावक के 12 व्रतों के शिविर के अंतर्गत तीसरे व्रत का विवेचन करते हुए कहा ग्रहस्थ को अपने जीवन निर्वाह हेतु धन की आवश्यकता होती है लेकिन धन प्राप्ति की लालसा में इंसान को अन्याय, अत्याचार, छल कपट और धोखाधड़ी का सहारा नहीं लेना चाहिए। अर्थ के लिए सब व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
धन का उपार्जन न्याय और नीति से होना चाहिए । जब तक व्यक्ति नैतिक और प्रामाणिक नहीं बनता तब तक वह सच्चे अर्थों में धार्मिक भी नहीं बन सकता। अन्याय और अनीति से तथा गलत तरीके से कमाया हुआ धन संपत्ति का नहीं अपितु विपत्ति का रूप धारण करता है । अनीति का धन सुख और चैन छीन लेता है।
जिस अर्थ की जड़ में पाप है वह कभी सुखद फल नहीं दे सकता। अनीति का धन लंबे समय तक नहीं टिखता । पाप का पैसा कभी बरकत नहीं करता । ऐसा पैसा अपने साथ बीमारी , संकट , कलह , अशांति आदि अनेक विपत्तियां साथ लेकर आता है। श्रावक के 12 व्रत एक नैतिक शिक्षा है और इन्हें धारण करने वाला अपराध की दुनिया में प्रवेश करने से बच जाता है ।
मुनि ने दो प्रकार की चोरी का उल्लेख करते हुए कहा छोटी चोरी तो असावधानी के कारण अनेक बार हो जाती है । इस चोरी में पाप तो है लेकिन सामने वाले को मरणतुल्य कष्ट नहीं पहुंचता । दूसरी प्रकार की जो मोटी चोरी बताई गई है। उसमें चोरी के साथ हिंसा भी जुड़ जाती है। इस प्रकार की चोरी योजनाबद्ध तरीके से हिंसक परिणामों से युक्त होने के कारण निंदनीय, अपराध मानी जाती है।
कानून की दृष्टि से भी चोरी करना एक अपराध है। दूसरों को लूटने के लिए जाल बिछाने वाला स्वयं कर्मों के जाल में फंस जाता है। अधिकतर चोर पकड़े जाते हैं और उन्हें सजा भुगतने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
मुनि ने पांच प्रकार की मोटी चोरी का उल्लेख करते हुए कहा एक श्रावक को सेंध लगाकर, दीवार आदि तोड़कर, सुरंग बनाकर, घर में घुसकर ,गांठ खोलकर, ताले पर नकली चाबी लगाकर चोरी नहीं करनी चाहिए। तलवार, बंदूक आदि की नोक पर चलते हुए राही को लूटने का काम भी नहीं करना चाहिए और ना ही किसी और की बहुमूल्य वस्तु जो रास्ते में गिर गई हो उसे चोरी की नियत से उठाना चाहिए। तीसरे व्रत में सगे संबंधी एवं व्यापार संबंधी छोटी चोरी का आगार रखते हुए नियम अंगीकार करवाया गया।
इससे पूर्व दूसरे व्रत के पांच अतिचारों का वर्णन करते हुए मुनि ने कहा कभी भी अचानक किसी के ऊपर झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए और ना ही एकांत में गुप्त बातचीत करते हुए को सुनकर झूठा कलंक लगाना चाहिए।
स्त्री पुरुष के मर्म को भी प्रकाशित नहीं करना चाहिए । किसी को झूठा उपदेश या गलत सलाह नहीं देनी चाहिए और ना ही झूठा लेख लिखना चाहिए। मुनि वृंद के सानिध्य में रविवार को प्रातः 9:30 बजे से विशेष प्रवचन होगा।