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जीवन में चित्त समाधि के लिए बदले दृष्टिकोण : मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

जीवन में चित्त समाधि के लिए बदले दृष्टिकोण : मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार

तेरापंथ सभा द्वारा आयोजित हुआ “दादा दादी चित्त समाधि शिविर”*

स्थानीय साहूकारपेट स्थित तेरापंथ सभा भवन में मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार के पावन सान्निध्य एवं श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में एक दिवसीय दादा दादी चित्त समाधि शिविर का आयोजन किया गया|

मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार ने इस अवसर पर कहा कि चातुर्मास के बाल्यकाल में आज वृद्धजनों का सम्मेलन हो रहा हैं| उम्र से तो व्यक्ति वृद्ध होते ही हैं, लेकिन कई व्यक्ति मन से वृद्ध होते ही नहीं, मानते ही नहीं| वृद्ध व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं – एक जो पिछला सोचकर आँसू बहाते हैं और दूसरे जो समय के साथ – साथ चलते हुए आगे बढ़ते रहते हैं| *उम्र के इस पण्डाव में व्यक्ति का नजरिया सही हो, समयानुसार जीवन व्यवहार में परिवर्तन आ जाए तो वृद्धावस्था सुधर जाती हैं|*

   *नकारात्मक सोच न रखे*

  मुनिश्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए आगे कहा कि समय से पहले अपने आप को बदल ले, नकारात्मक सोच न रखे और सेवा लेने का तरीका सीख ले तो वृद्धावस्था वरदान बन जाती हैं| जब दृष्टिकोण नकारात्मक होता है, जीवन व्यवहार में आग्रह होता हैं तो बुढ़ापा अभिशाप बन जाता हैं, रिश्तों में दूरियाँ आ जाती हैं| *“जेनरेशन गेप”* सदा से रहा हैं और रहेगा| अगर बच्चों पर अनुभव व ज्ञान थोपेगें, तो रिश्ते गड़बड़ा जायेंगे| अनुभव व ज्ञान सही समय पर दिया जाए और आज की पीढ़ी से नई जानकारीयाँ प्राप्त कर उनके साथ चले तो बुढ़ापा संवर जायेगा|

   *अहं टकराया तो जीवन दु:खों का घर*

मुनि श्री ने आगे कहा कि *“वृद्ध होते गये, समयनाकूल ढ़लते गये तो वृद्धावस्था सुखी| वृद्ध होते गये, ढ़ले नहीं तो ठोकरे खानी पड़ती हैं|”* जहाँ झुकना पड़े, वहाँ झुकना चाहिए, जहाँ रूकना पड़े, वहाँ रूकना भी चाहिए| अहं टकराया तो सुख का संसार नहीं अपितु जीवन दु:खों का घर बन जायेगा|

मुनि श्री ने विशेष पाथेय देते हुए कहा कि *चित्त समाधि के लिए दृष्टिकोण बदले, शब्दों को बदले, बच्चों को अपने तरीके से जीने दे| जीवन में समता रखे, लालसाएँ कम करे, धर्माराधना करते हुए सुखमय, आनन्दमय जीवन जीये, अपने अनुभवों को बाँटे|* एक वृद्ध व्यक्ति का अनुभव पूरी दुनिया को बदल सकता हैं| मुनि श्री रोचक प्रेरक कथानक के माध्यम से कहा कि सही समय पर ज्ञान देने, बुजुर्गों के अनुभव से देश को डूबने से बचा लिया|

   *रिश्ते काँच की तरह होते नाजुक*

मुनि श्री विनीत कुमार ने कहा कि जीवन के तीन पड़ाव बचपन, जवानी, बुढ़ापा होते हैं| तीनों पड़ाव में व्यक्ति सुखी जीवन जीना चाहता हैं| बुढ़ापे में चित्त समाधि के लिए कुछ बिन्दुओं पर अमल किया जाए तो बुढ़ापा सँवर जाता हैं| जीवन में रिश्तों को रिसने न दे| *दखलअंदाजी छोड़, प्रेम की धारा बहाएँ, मधुर वाणी का उपयोग करे|* रिश्ते काँच की तरह नाजुक होते हैं, इन्हें मजबूती से संभालकर रखना चाहिए| दादा दादी अनुभव के भण्डार होते हैं, आप को आने वाली पीढ़ी को अपने अनुभवों से ज्ञान देना चाहिए| *जीवन के अंतिम समय में श्रावक के दो मनोरथों को पूरा कर समाधिमरण का लक्ष्य रखने का लक्ष्य रखने की मुनि श्री ने प्रेरणा दी|*

मुनि श्री विमलेशकुमार ने कहा कि बचपन, जवानी, वृद्धावस्था कई माईनों में उपयोगी है, पर वृद्धावस्था सबसे सुन्दर अवस्था हैं| बचपन खेलकूद, जवानी भाग दौड़ में बीत जाती हैं| *वृद्धावस्था ऐसी अवस्था हैं जहा अतीत का सिहांवलोकन, ज्यादा से ज्यादा धर्म ध्यान कर सकते हैं, आराम से रहने का समय मिलता हैं|* जोश के साथ होश भी इस अवस्था में रहता है| बचपन ज्ञानार्जन, जवानी धनार्जन में बीत जाती हैं| बुढ़ापा पुण्यार्जन एवं धर्माराधना में बिताना चाहिए|  मुनि श्री ने कहा कि *“सुखी बुढ़ापे का एक मंत्र दादा बन जाओ तो दादागिरी छोड़ दो और परदादा बन जाओ तो दुनियादारी छोड़ दो|”* मुंह से बोले तो आशीर्वचन निकले, हाथ उठे तो आशीर्वाद के लिए उठे| स्वस्थ रहने के लिए नियमित योग, ध्यान, स्वाध्याय करने की प्रेरणा देते हुए मुनि श्री ने साधना, संयम करते हुए *संथारा पूर्वक मरण का वरण* करने की प्रेरणा दी|

मुख्य वक्ता बी एल आच्छा ने कहा कि भगवान ॠषभदेव ने प्रवृति के साथ निवृत्ति का भी उपदेश दिया, उसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए| *बुढ़ापे में काम की अच्छी चीजों को साथ रखते हुए अनावश्यक चीजों को छोड़ना भी सिखना चाहिए,* अनावश्यक आसक्ति नहीं रखनी चाहिए| जब तक जीये ॠजुता व आनन्द के साथ जीये| मित्रों के साथ समय व्यतीत कर समय का कुछ उपयोग करना चाहिए| *जैन जीवन शैली के सुत्रों को अपनाकर स्वतंत्र रूप में आत्मा में रमण करे|* सन्तुलित जीवन जीते हुए परम् लक्ष्य मोक्ष जाने की भावना रखकर अपने जीवन के अन्तिम समय को सार्थक करे|

इससे पुर्व चित्त समाधि शिविर का शुभारंभ मुनिश्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी के मंगल मंत्रोच्चार एवं जय तुलसी संगीत मण्डल की बहनों के द्वारा मंगलाचरण गीत के साथ हुआ| आगंतुकों का हृदय की गहराई से स्वागत करते हुए तेरापंथ सभा अध्यक्ष श्री विमल चिप्पड़ ने अपने भावपूर्ण विचार व्यक्त किये| शिविर संयोजक श्री इन्दरचन्द डुंगरवाल ने चित्त समाधि रखने का उद्देश्य बताते हुए बुजुर्गों के सम्मान में अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए शिविर की व्यवस्था में सहयोगी सभी कार्यकर्ताओं, पूर्व संयोजकों के प्रति आभार व्यक्त किया| प्रसिद्ध कवि *“मिट्ठू मिठास”* ने माता पिता को समर्पित *“सेवा करे माँ बाप की, न रहे कमी किस बात की”* नामक कविता प्रस्तुत कर माँ बाप की सेवा करने की बात कही|

तेरापंथ सभा की ओर से शिविर के प्रायोजक श्री सुरेशचन्द बोहरा, श्री नरेंद्र भंडारी, मुख्य वक्ता बी एल आच्छा, कवि मिट्ठू मिठास का मोमेन्टों व साहित्य द्वारा सम्मान किया गया| मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी के संसार पक्षीय पिताजी श्री ताराचन्द खटेड़ का भी सम्मान किया गया| इस शिविर में लगभग 275 संभागीयों ने सहभागीता निभाई| कार्यक्रम का कुशल संचालन सभा मंत्री श्री प्रवीण बाबेल एवं धन्यवाद ज्ञापन सहमंत्री श्री विमल बोहरा ने किया| मुनि श्री के मंगल पाठ के साथ कार्यक्रम सानन्द परिसम्मपन्न हुआ| 
  
सभी संभागीयों ने शिवीर के सम्यक् आयोजन की सराहना की| तेरापंथ सभा द्वारा आयोजित इस शिविर की सफलता पूर्ण व्यवस्थाओं में तेयुप, महिला मण्डल, किशोर मण्डल, ज्ञानशाला परिवार का भी सराहनीय सहयोग रहा| 
  

      *प्रचार प्रसार प्रभारी*
*श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, चेन्नई*

स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति 

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