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जीवन में कोई सुनिश्चित लक्ष्य धारण करें: देवेंद्रसागरसूरि

जीवन में कोई सुनिश्चित लक्ष्य धारण करें: देवेंद्रसागरसूरि

Sagevaani.com /चेन्नई. श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन मूर्तिपूजक जैन संघ में बिराजमान पूज्य आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरीजी ने प्रवचन के माध्यम से श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवनयापन और जीवन-लक्ष्य दो भिन्न बातें हैं। प्रायः सामान्य लोगों का जीवन-लक्ष्य जीवनयापन ही रहता है।

खाना-कमाना, ब्याह- शादी, लेन-देन, व्यवहार-व्यापार आदि साधारण क्रमों को पूरा करते हुए मृत्यु तक पहुंच जाना, बस इसके अतिरिक्त उनका और कोई लक्ष्य नहीं होता। एक जीविका का साधन जुटा लेना, एक परिवार बसा लेना और बच्चों का पालन-पोषण करते हुए शादी-ब्याह आदि कर देना मात्र ही साधारणतया लोगों ने जीवन-लक्ष्य मान लिया है। मीठे फल खाने की इच्छा से दो मित्र एक बगीचे में गए। माली ने कहा इस बगीचे के मालिक की आज्ञानुसार यहां एक ही दिन ठहर सकते हो, सो शाम तक जितने फल खा सकते हो, खा लो।दोनों अपनी रुचि के फल खाने चल दिए। एक ने पेट भरकर फल खाए।

दूसरा देखता रहा, पौधों के लिए कैसी मिट्टी चाहिए? पानी कैसे लगाया जाए? शाम तक उसने एक नया बगीचा लगाने की सारी बातें जान लीं, फल एक भी नहीं खायाघर जाकर दूसरा बाग लगा लिया। यह संसार भी ऐसा ही है। मनुष्य यहां एक निश्चित अवधि के लिए आता है, जो सांसारिक आकर्षणों में पड़े हैं, वे तो पहले युवक की भांति हैं। समझदार वे हैं, जो दूसरे की तरह परिस्थितियों का अध्ययन कर जीवन का सच्चा लक्ष्य प्राप्त करते हैं वस्तुतः यह जीवनयापन की साधारण प्रक्रिया मात्र है, जीवन-लक्ष्य नहीं। जीवन-लक्ष्य उस सुनिश्चित विचार को ही कहा जाएगा, जो संसार के साधारण कार्यक्रम से कुछ अलग, कुछ ऊंचा हो और जिसे पूरा करने में कुछ अतिरिक्त पुरुषार्थ करना पड़े।

जीवन में कोई सुनिश्चित लक्ष्य, कुछ विशेष ध्येय-धारणा करके चलने वाले को असाधारण व्यक्तियों की कोटि में रखा जाता है, उनकी विशेषता तथा महानता केवल यही होती है कि परंपरा से हटकर साधारण जीवन के अभ्यस्त व्यक्तियों में से उन्होंने आगे बढ़कर, कुछ असामान्यता ग्रहण की है। लोग उनको महान इसलिए मान लेते हैं कि सामान्य लोग समझी-बुझी तथा एक ही लीक पर चली जा रही जीवन गाड़ी में न जाने कितनी दुःख-तकलीफें अनुभव करते हैं, तब उस व्यक्ति ने एक अन्य, अनजान एवं असामान्य मार्ग चुना है। उसका साहस एवं कष्ट-सहिष्णुता कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी है। जीवनयापन की साधारण प्रक्रिया को भी यदि एक असामान्य दृष्टिकोण से लेकर चला जाए तो वह भी एक प्रकार का जीवन- लक्ष्य बन जाता है।

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