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जीवन में कोई भी कष्ट, उपसर्ग आए, हमें विचलित नहीं होना है- युवाचार्य महेंद्र ऋषि

जीवन में कोई भी कष्ट, उपसर्ग आए, हमें विचलित नहीं होना है- युवाचार्य महेंद्र ऋषि

पोरुर संघ में धर्मसभा का आयोजन

श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी महाराज का पदार्पण सोमवार को पोरुर स्थानकवासी जैन संघ में हुआ। उन्होंने धर्मसभा में अपने संबोधन में कहा कि अगर हमारी श्रद्धा और पराक्रम सफल हो जाए तो हम मेरिट लिस्ट में आ जाते हैं। पूर्व जन्म में अनंत पुण्य की राशि एकत्रित की जिसके कारण हमें मानव भव और जैन कुल की प्राप्ति हुई। उन्होंने कहा रत्नों की प्योरिटी जितनी ज्यादा होती है, उतना ही ज्यादा उनका मूल्य होता है। यदि पत्थर की प्योरिटी से ही उसका मूल्य निर्धारित होता है, तब सोचिए, कितनी पुण्य राशि एकत्रित हुई होगी, तब यह मानव जन्म, जैन कुल, जिनवाणी हमें मिली। इस काया रुपी नाव का उपयोग हमें जल्दी कर लेना है, यह पुण्य से मिला पुरुषार्थ अब करना है। हमारी श्रद्धा देव- गुरु- धर्म के प्रति होनी चाहिए। नियाणा यानी मन्नत से मिला हुआ हमसे छूटता नहीं है। इसीलिए वासुदेव दीक्षा ग्रहण नहीं कर पाए। तीन खंड का राज्य उन्हें जो मिला था।

उन्होंने कहा हमारा धर्म अरिहंत परमात्मा जैसे हमको बनाता है। यह सामर्थ्य अन्य धर्मों में नहीं है। कोई भी धर्म, दर्शन, पंथ यह बात को स्वीकार नहीं करता कि आप भगवान बन सकते हो। यह हमारा धर्म ही हैं, अरिहंत परमात्मा ही है कि वे ऐसा कहते हैं। हमें जो अनुकूलता मिलती है, वह परमात्मा की देन है। यह परमात्मा के मार्ग का फल है कि जो उनके प्रति आस्थावान रहेगा तो उस पर आया हुआ दुःख भी कुछ नहीं कर पाएगा। कोई भी कष्ट, उपसर्ग आए, हमें विचलित नहीं होना है। हमें कर्मनिर्जरा का अवसर मिला है, ऐसा सोचना चाहिए। सुख दुःख कर्मों के कारण आते हैं।‌ यदि कष्ट आए तो उसे कष्ट नहीं मानना।

उन्होंने कहा देव गुरु के प्रति श्रद्धा है तो पंच महाव्रतधारी संतों के प्रति होनी चाहिए। वहां आस्था गड़बड़ानी नहीं चाहिए। यह करुं, वह करुं, इस चक्कर में ऊंचे-नीचे हो जाते हैं। गुरु तत्व ही हमें धर्म का मार्ग बतलाता है। संत सतीजी का रास्ता ही हमारे लिए गुरु तत्व पाने के लिए है। हम परमात्मा के मार्ग पर चलने वाले संत सती की उपेक्षा करेंगे तो हम धर्म के मार्ग पर कैसे आगे बढ़ पाएंगे। हमारी श्रद्धा में फरक नहीं आना चाहिए। इससे नुकसान हमारा ही है। यदि देव गुरु धर्म श्रेष्ठ है तो उनके मार्ग पर आगे बढ़ो। हमारी श्रद्धा अटल है तो संयम पराक्रम कर सकते हैं।‌ मर्यादा में रहना ही संयम है, चाहे वह गृहस्थ जीवन हो या साधु जीवन। जो त्याग करता है, वही संवर कर सकता है, कर्मनिर्जरा कर सकता है।‌ व्रत, पचक्खाण आ जाए तो वह दुर्लभ श्रद्धा है। दीक्षा केवल एक विशिष्ट पड़ाव की शुरुआत हैं। गृहस्थ जीवन में जिम्मेदारियों को संभालकर आगे बढ़ना है। पराक्रम हमें भी करना है और आपको भी। जीवन को व्रत, प्रत्याख्यान से सार्थक बनाएं।

इस मौके पर वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ तमिलनाडु के मंत्री धर्मीचंद सिंघवी ने कहा कि पोरुर संघ ने ही युवाचार्यश्री का प्रवेश और पुनः विहार कराया है। इस आध्यात्मिक द्वार के हम आभारी रहेंगे। उन्होंने पोरुर संघ का तन मन धन से सहयोग करने के लिए आभार जताया। उन्होंने कहा इस चातुर्मास में युवाओं की शक्ति को देखा है, वह अनुमोदनीय है। ऐसा माहौल कभी नहीं देखा गया। 36 संघ महिला महासंघ से जुड़े। इस दौरान महिला मंडल की सदस्याओं ने भावपूर्ण गीतिका की प्रस्तुति दी। संघ प्रमुख ललित सांखला, जुगराज बोरुंदीया, रमेशचंद कांकरिया, ज्ञानचंद पोकरणा ने अपने विचार रखे। मंत्री प्रकाश बंब ने सभा का संचालन किया।

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