चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी महाप्रज्ञा ने कहा कि जाते जाते अगर कोई बात कह दे तो वह बात दिल में दिमाग में और आचरण में लाना चाहिए। जैसे पिता अंतिम समय में अपने बेटे को वसीयत देकर जाते है महावीर उत्तराध्ययन सूत्र में अपने उपासकों को अंतिम वसीयत देकर गए। यह वसीयत जीवन में उतार ली जाए तो स्व कल्याण हो जाएगा।
उत्तराध्ययन सूत्र में बताया गया है कि तेरा मेरा करने में अपना समय व्यतीत नहीं करना चाहिए। जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाओगे। प्रभु ने संसार ने चार प्रकार के गड्डे बताए है। पेट का गड्डा, समुद्र का गड्डा, तृष्णा का गड्डा। इन चारो गड्डों में नो एंट्री का बोर्ड नहीं है। पेट कभी भरा नहीं। आज टिफीन भरा कल खाली। नई नई चीजे खाने की चाहत रहती है।
समुद्र में कितनी नदिया आई पर समुद्र कभी भरा नहीं। तृष्णा, इच्छा कभी पूरी नहीं होती। श्मशान घाट कभी भरता नहीं। उत्तराध्ययन सूत्र की एक एक शिक्षा को जीवन में उतारने का प्रयास करोगे तो जीवन उज्ज्वल बनेगा। संसार में रहकर भी संसार आप में नहीं हो।
जिस तरह मक्खी शहद पर बैठती है और एक मिश्री पर बैठती है। शहद पर बैठी पर बैठी हुई मक्खी मर जाती है। मिश्री पर बैठी हुई मक्खी उड़ जाती है। व्यक्ति भी संसार में रहकर मिश्री वाली मक्खी की तरह अलिप्त रहे तो वह जीवन उत्थान के पथ पर अग्रसर रहेगा।