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जीवन जीने की कला है कायोत्सर्ग – साध्वी सुधाकंवर

जीवन जीने की कला है कायोत्सर्ग – साध्वी सुधाकंवर

कोडम्बाक्कम और वडपलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 2 अगस्त 2022 शुक्रवार को परम पूज्य सुधा कंवर जी महाराज साहब ने फरमाया कि “कायोत्सर्ग” करने से अतीत और वर्तमान के कर्मों की निर्जरा होती है, आत्मा पवित्र और निर्मल बनती है और शांति की अनुभूति होती है! कायोत्सर्ग अर्थात काया की चंचलता काया का ममत्व हटाना। जैन दर्शन में कायोत्सर्ग का अत्यधिक महत्व है। कायोत्सर्ग जीवन जीने की कला है। कायोत्सर्ग के द्वारा आत्मा समस्त कर्मों को क्षय कर सिद्धालय को प्राप्त कर लेता है। “कायोत्सर्ग 18 पापों से और 8 कर्मों से छुटकारा दिलाता है! कायोत्सर्ग तीन प्रकार के होते हैं! जघन्य मध्यम एवं उत्कृष्ट! बाहुबली ने उत्कृष्ट कायोत्सर्ग करके केवल ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त किया था!

प.पू.सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि बच्चों में संस्कार और प्यार घर से शुरू होता है! घर में दादा दादी या माता पिता अपने बच्चों को रोचक कहानियां अपने गोद में या आंचल में लेकर सुनाते हैं, उसके सिर पर हाथ सहलाते तो बच्चा आनंदित होता है! यह सुरक्षा और सुख बच्चे को CD, TV या मोबाइल में नही मिलता! लेकिन हम बच्चे से छुटकारा पाने के लिए बच्चे के हाथ में मोबाइल या टीवी का रिमोट पकड़ा देते हैं और बच्चा उसका आदी हो जाता है!

जब हम परेशान होते हैं तो हमारा परिवार और हमारे बच्चे भी परेशान होते हैं और हमारे घर की शांति भंग हो जाती है! हमारे जीवन का आधार है विश्वास और प्रेम! इसके बिना घर में शांति नहीं मिल सकती! और घर के अंदर “शांति” नहीं तो फिर “शांति” बाहर भी नहीं मिलेगी! Understanding (समझ), attention (ध्यान), acceptance (स्वीकार), tolerance (सहनशीलता) की भी परिवार में बहुत जरूरत पडती है! रिश्ते बनाना बहुत आसान है लेकिन निभाना बहुत मुश्किल होता है! इसके पहले संवत्सरी के दिन 20 जनों ने आठ के प्रत्याख्यान किये! कल शाम तीन बजे धर्म सभा में छः जनों ने नौ की तपस्या और आज की धर्म सभा में एक तपस्वी अंजली बाई खींवसरा ने पन्द्रह उपवास के प्रत्याख्यान हुये! इसके अलावा बहुत सारे प्रत्याख्यान हुये!

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