एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि जिदंगी एक बंासुरी की भांति है जो अपने में खाली और शून्य होते हुए भी संगीत पैदा करने का सामथ्र्य लिए हुए है। यह बजाने वाले पर निर्भर करता है कि कौन कैसे बजाता है।
उस पर राग के सुर गाता है या वैराग्य के। बांसुरी के दिव्य स्वर आत्मा को जगा सकते है। जीवन छोटा हो या बड़ा हो महत्व इस बात का नहीं है, महत्वपूर्ण यह है कि जीवन कैसे जिया जाता है। जीवन छोटा ही हो पर प्रशस्त जीवन जियो।
यदि हमें जीवन जीने का सलीका न आया तो जीवन जीने का क्या मकसद? हम जी रहे हैं क्योंकि सांस चल रही है। एक अंधी और अंतहीन पुनरुक्ति में जीवन बीतता चला जा रहा है।
साध्वी स्नेह प्रभा ने कहा कि भोग में रोग का, कुलीन को पतन का, धनवान को राजा का, मौन में दीनता का, बल में शत्रुता का, रुप में बुढ़ापे का, शास्त्र ज्ञान में वाद विवाद का, गुणवान को दुर्जन का, शरीर धारण करने में मृत्यु का भय छिपा होता है।
संसार की हर वस्तु में कोई न कोई भय जरुर छिपा होता है। लेकिन तीन लोकों में मात्र वैराग्य ही ऐसी क्रिया या भावना होती है जिसमें किसी प्रकार का भय नहीं होता है। वैराग्यवान चाहे जंगल में हो या शहर, गांव या कस्बे में हो, समूह में हो या अकेले में वह सभी जगह और सभी परिस्थितियों में प्रसन्न ही रहता है।