चेन्नई. साहुकारपेट स्थित श्री राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपने जीवन को सुंदर बनाना हो तो अपने अंदर आना होगा। जीवन को सफल बनाकर सुफल प्राप्त करना हो तो अपनी शक्तियों को केन्द्रित एवं मन को एकाग्र करना होगा।
यदि हम एकाग्रतापूर्वक परमात्मा या किसी मंत्र का ध्यान करते हैं तो शीघ्रता के साथ हमें सिद्धि प्राप्त हो सकती है। नर का मन वानर की तरह चंचल होता जो इधर से उधर भटकता रहता है। मन की एकाग्रता से नर भी नारायण बन जाता है।
मुनिवृन्द ने कहा, रुपए गिनना हो तो मन एकाग्र हो जाता है, कांटों से बचना हो तो संभल-संभल कर चलने लग जाता है, गिरी हुई कीमती वस्तु को खोजने में मन स्वत: ही एकाग्रचित्त हो जाता है, लेकिन साधना के समय मन विराधना की ओर जाने लगता है, इसका कारण है हमारी रुचि।
जिसमें हमारी रुचि होती है, उसमें हमारा मन स्वत: ही लग जाता है। इसलिए अपनी रुचि को हमें विराधना से आराधना की ओर ले जाना चाहिए। भक्तामर के तृतीय श्लोक को समझाते हुए कहा कि परमात्मा के समक्ष हमें बालक की तरह सरल बनकर प्रस्तुत होना चाहिए, जिससे हम प्रभु कृपा को प्राप्त कर सकें।