गुरू पदम अमर कुल भूषण सेवा सुमेरू उप प्रवर्तक परम पूज्य श्री पंकज मुनि जी म. सा. की पावन निश्रा में दक्षिण सूर्य ओजस्वी वक्ता डॉ. श्री वरूण मुनि म. सा. की पावन प्रेरणा से श्री एस. एस. जैन संघ आवडी के तत्वावधान में होली चातुर्मासिक भव्य आराधना सानंद सम्पन्न हुई।
मधुर वक्ता श्री रूपेश मुनि जी म. सा. ने बड़ी ही मधुर वाणी में सर्व प्रथम श्री पैंसठीया छन्द की आराधना करवाई । धर्म सभा में उपस्थित सभी भाई बहनों ने बहुत ही श्रध्दापूर्वक इस अनुष्ठाण में लाभ लिया । तत्पश्चात् ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. श्री वरूण मुनि जी म. सा. ने होली के पावन संदेश पर प्रकाश डालते हुए अपने ओजस्वी उद्बोधन में फरमाया हमारा ये भारतवर्ष पर्वों और त्योहारों का देश है । होली पर्व अपने आप में विशेष है , यह पर्व रंगों का पर्व है , यह पर्व प्रेरणा देता है कि जो भी जीवन में गलतियां हों, मन मुटाव हों, द्वेष – क्लेश हों, उन सबको भूला कर हम आपस में एक दूसरे से क्षमा – भाव, प्रेम – भाव का संचरण करें।
इसी के साथ यह पर्व इस बात की भी प्रेरणा देता है कि हम जीवन में पवित्र बनें, तीसरी बात होली का त्योहार मस्ती का पर्व है यह पर्व हमें सीख देता है कि हम जीवन को मस्ती के साथ जीएं । प्रसन्नता के साथ जीएं । अक्सर जीवन में शिकायतें होती हैं , तनाव चिंताएं होती हैं , उन सबको छोड़कर वर्तमान में जीएं और इसके साथ साथ भक्त प्रह्लाद का जीवन चरित्र हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने इष्ट के प्रति श्रध्दावान बनें ।
जैन परंपरा की अगर बात करें तो होली का पर्व हमे संदेश देता है कि हम अपने जीवन की ग्रंथियों को ( गांठों को ) नकारात्मक विचारों व दुर्भावनाओं को जलाएं और अरिहंत भगवन्तों का सफेद रंग , सिध्द भगवन्तों का लाल रंग , आचार्यों का पीला रंग , उपाध्याय भगवन्तों का हरा रंग , साधु साध्वी भगवन्त का काला रंग यानि उनके सद्गुण अपने जीवन में अपनाएं तो सच में अध्यात्म की दृष्टि से होली मनाना सार्थक होगा।
पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि संसार के रंग चढ़ते हैं और उतर जाते हैं लेकिन ज्ञान भक्ति वैराग्य का रंग ऐसा है अगर एक बार चढ़ जाए तो फिर उतरता नहीं , वह रंग हमेशा बढ़ता ही चला जाता है । जैसे मीरा बाई का जीवन , जैसे महात्मा कबीर का जीवन । जिन्होंने लिखा है ‘लालि देखन् मैं चला , तो मैं भी हो गया लाल’ ये भक्ति की , धर्म की लाली ऐसी है जो न केवल जीवन को बल्कि घर , परिवार , समाज , देश और राष्ट्र को ही सुंदर बना देती है ।
उत्तर भारत में कई स्थानों पर जब लोग होली खेलते हैं पहले गुलाल का प्रयोग होता था या प्रकृति से बने रंगों का प्रयोग होता था । आजकल कीचड़ , ग्रीस , तारकॉल , कामिकल और पता नहीं कैसी कैसी गंदी चीजों का प्रयोग किया जाता है । लोग भांग , शराब , जुआ आदि व्यसनों का सेवन करते हैं । पर्व को उसकी मर्यादा से मनाएं तो वो शोभाजनक होता है ।
हमारे जीवन का जो भी कचरा हे यानि जो भी दुर्गुण हैं , हमें उन्हें जलाना चाहिए , ये ही होली दहन का पर्व हमें प्रेरणा देता है।
प्रवचन के अंत में श्री राजमति जैन महिला मंडल , श्री चंदन बाला जैन बहु मंडल ने पूज्य गुरू भगवन्तों के प्रति भक्ति गीत प्रस्तुत किए । संघ के अध्यक्ष श्रीमान् सा पदम चंद्र जी जैन , महामन्त्री श्री जबर चन्द जी खिंवसरा , कोषाध्यक्ष श्री विजय राज जी रांका एवं सलाहकार पवन कुमार जी नाहर आदि आवडी श्रीसंघ के पदाधिकारियों ने धर्म सभा में उपस्थित बाहर गांव से पधारे हुए गुरू भक्तों का हार्दिक अभिनन्दन किया एवं पूज्य गुरू भगवन्त् के सान्निध्य को अपने संघ का सौभाग्य बताया।
धर्म सभा में साहुकारपेट चैन्नई , अंबत्तूर , पटाभिराम सहित अनेक स्थानों से बड़ी संख्या में गुरू भक्त उपस्थित रहे। श्रमण संघीय उप प्रवर्तक भोले बाबा श्री पंकज मुनि जी म. सा. के पावन मुखार्विंद से मंगल पाठ के द्वारा धर्म सभा का समापन हुआ।
प्रवचन के उपरांत श्रीसंघ की ओर से गौतम प्रसादी का विशेष आयोजन किया गया । विद्याभिलाषी श्री लोकेश मुनि जी म. सा. ने बताया कि पूज्य गुरू भगवन्त् आवडी से प्रस्थान कर अंबत्तूर पधारेंगे और वहां से अन्नानगर, किलपॉक होते हुए चैन्नई के विभिन्न उप नगरों की स्पर्शना व धर्म प्रभावना करेंगे।