चेन्नई. गोपालपुरम स्थित छाजेड़ भवन में विराजित कपिल मुनि ने कहा इंसान का जीवन एक तिजोरी के समान है इसमें सद्गुण रूपी आभूषण रखें व दुर्गण नहीं। कृपणता जीवन में उदारता के गुण को प्रकट नहीं होने देता। जहां उदारता है वहां मधुरता और सरसता का वास है। उदार व्यक्ति ही लोकप्रिय और भगवान की कृपा का पात्र बनता है।
जहां सिर्फ संग्रह है वहां खारापन होता है। समुद्र इसका ज्वलंत उदाहरण है । नदी का पानी मीठा होता है क्योंकि वह वितरण करती है। कंजूस व्यक्ति बड़ा शोषण कर्ता भी होता है वह येन केन प्रकारेण धन संग्रह के लिए न्याय नीति, धर्म, कानून और मानवता सबकी बलि चढ़ा देता है ऐसा व्यक्ति न खुद चैन से जीता है और न किसी को चैन से जीते हुए को देख पाता है उसके सारे कृत्य जघन्य और अमानवीय बन जाते हैं । कंजूस के समान पाखंडी और क्रूर व्यक्ति ढूंढऩे पर भी नहीं मिलता।
स्वयं के जीवन पथ को आलोकित करने के साथ दूसरों की जिंदगी की राहों को रोशन करना दरअसल जिन्दगी का महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। प्रत्येक इंसान को अपनी गिरेबां में झांककर देखना चाहिए कि मैं औरों की जिंदगी में सहायक बन रहा हूं या बाधक।
जब भी व्यक्ति पने आपको आगे बढ़ाने के बजाय दूसरों को पीछे खींचता है तो उस इंसान के भीतर सृजन की शक्ति नहीं बल्कि विध्वंस की शक्ति काम कर रही होती है। विध्वंस की शक्ति सक्रिय होने पर इंसान हैवान बन जाता है। इंसान को कुदरत की ओर से जो शक्ति का वरदान मिला है उस शक्ति की सार्थकता सृजन और निर्माण करने में ही निहित है।