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ज्ञान वाणी

जिस परिणाम और प्रवृत्ति से आत्मा में कर्मों का आगमन होता है, उसे आश्रव कहा जाता है

क्रमांक – 37

. *तत्त्व – दर्शन*

 *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*

*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*

*🔅 आश्रव*

*👉 जिस परिणाम और प्रवृत्ति से आत्मा में कर्मों का आगमन होता है, उसे आश्रव कहा जाता है। जिस प्रकार मकान के दरवाजा होता है, तालाब के नाला होता है और नौका के छिद्र होता है, उसी प्रकार जीव के आश्रव होता है। आश्रव जीव का परिणाम है, इसलिये वह जीव है और अरूपी है। आत्मा के द्वारा जो कर्म-पुद्गल ग्रहण किये जाते हैं, वे अजीव हैं और रूपी हैं। आश्रव के द्वारा पुण्य-पाप दोनों का ग्रहण होता है।*

*आश्रव कर्म-बंध का हेतु है अतः यह मोक्ष का बाधक है और हेय है। शुभ योग से कर्मों की निर्जरा होती है। अतः शुभ योग मोक्ष का साधक है। शुभ योग आश्रव और निर्जरा दोनों है। पुण्य-बंध की दृष्टि शुभ योग मोक्ष का बाधक है तथा निर्जरा (कर्म क्षय) की दृष्टि से शुभ योग मोक्ष का साधक है। मुख्यतः आश्रव के पांच भेद हैं तथा विस्तार करने पर आश्रव के बीस भेद हो जाते हैं। कर्म-बंधन के जितने द्वार या निमित्त हैं, वे सब आश्रव हैं।*

*क्रमशः ………..*

*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*

विकास जैन।

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