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जिसने धर्म की शरण स्वीकार कर ली उसे और किसी शरण की जरुरत नहीं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

जिसने धर्म की शरण स्वीकार कर ली उसे और किसी शरण की जरुरत नहीं : साध्वी नूतन प्रभाश्री जी

साध्वी पूनमश्री जी ने बताया- धर्म पगड़ी नहीं जिसे मंदिर में पहन लो और दुकान में उतार दो

शिवपुरी। पोषद भवन में प्रसिद्ध जैन साध्वी नूतन प्रभाश्री जी और साध्वी पूनमश्री जी अपने प्रवचनों में जीवन में धर्म की उपयोगिता को उदाहरणों सहित स्पष्ट कर रही हैं। साध्वी पूनमश्री जी बताती हैं कि धर्म से विमुख होना इंसान के दुख का एक मात्र कारण है। वहीं साध्वी नूतन प्रभाश्री जी कहती हैं कि धर्म एक मात्र शरण हैं जिसने धर्म की शरण स्वीकार कर ली उसे और किसी शरण की आवश्यकता नहीं है। साध्वी वंदनाश्री जी ने सुमधुर स्वर का गायन किया कि जगत में चिंता मिटी उसकी जिसने धर्म की शरण स्वीकार की…।

साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने कहा कि दुख का एक मात्र कारण यह है कि हम सिर्फ शरीर और संसार में उलझे रहते हैं। यह बात ध्यान में नहीं रहती कि संसार के सारे संबंध तब तक हैं जब तक आत्मा इस शरीर के साथ है। आत्मा के अलग होते ही कोई भी मृतक को अपने घर में नहीं रखना चाहता। इस शरीर, सौन्दर्य, स्वास्थ्य पर क्या इठलाएं जिसमें स्थायित्व नहीं है। इंसान प्रतिपल बदल रहा है। बचपन में कुछ जवानी में कुछ और बुढ़ापे में कुछ। उन्होंने भरत चक्रवर्ती का उदाहरण देते हुए बताया कि जब वह अपने ड्रेसिंग रूम में शरीर के सौंदर्य को देख रहे थे उनके हाथ की एक अंगूठी निकल गई। उन्होंने देखा कि अंगूठी निकलने से ऊंगुली का सौंदर्य कितना कम हो गया है। इसके बाद उन्होंने अपने शरीर के सारे आभूषण उतारे और फिर अपने शरीर का अवलोकन किया तो उन्हें जीवन की नश्वरता का बोध हुआ।

इसके बाद उनका चिंतन बढ़ा और उन्होंने धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान की अवस्था में केवल्य को प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि इंसान हर समय किसी शरण की तलाश में रहता है और समय-समय पर उसकी शरण बदलती रहती है। लेकिन सबसे बड़ी शरण धर्म की होती है जिसने धर्म की शरण स्वीकार कर ली उसे और किसी शरण की जरूरत नहीं होती। इसके बाद साध्वी वंदनाश्री जी ने भजन का गायन किया कि हर दम मानव मुख से बोल, धम्मं शरणम् गच्छिमि..। उन्होंने कहा कि अंतिम समय में भी व्यक्ति संसार में उलझा रहता है और उसका ध्यान संसार, माया तथा धन में लग रहता है, लेकिन याद रखिए कि धर्म के सिवाय कोई शरण देने वाला नहीं है। धार्मिक व्यक्ति संसार को दुखों का घर मानता है। इस संसार में रहो, लेकिन इसमें अटको मत भटको मत, संसार से पार होना ही एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए।

जीवन का लक्ष्य धर्म होना चाहिए धन नहीं

साध्वी पूनमश्री जी ने बताया कि इंसान अपनी पूरी जिंदगी धन प्राप्ति की दौड़ में व्यतीत कर देता है, लेकिन फिर भी उसके हाथ अंतिम समय में खाली रहते हैं, लेकिन यदि धन की बजाये वह धर्म को अपना जीवन बनाए तो धन पीछे-पीछे आएगा। धन तो धर्म की छाया है। लक्ष्य धर्म की ओर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म जीवन जीने की कला सिखाता है। धर्म शिव का मार्ग है।

धर्म कंकर से शंकर बनने का विज्ञान है, लेकिन धर्म पगड़ी नहीं होना चाहिए जो मंदिर में पहन ली और दुकान जाकर उतार ली। धर्म चमड़ी के समान होना चाहिए। साध्वी जी ने बताया कि अधिकांश लोग जीवनभर धार्मिक क्रियाओं में उलझे रहते हैं, लेकिन इसके बाद भी परिवर्तन नहीं आता। इसका एक मात्र कारण है कि उन्होंने धर्म को अपने अंतस में धारण नहीं किया। अपने हृदय में उसे स्थान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि शुद्ध हृदय में ही धर्म का निवास होता है।

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