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ज्ञान वाणी

जिसने तीर्थंकर का आशीर्वाद ग्रहण किया वही तीर्थ बना : उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

जिसने तीर्थंकर का आशीर्वाद ग्रहण किया वही तीर्थ बना :  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. शुक्रवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि व तीर्थेशऋषि महाराज ने रायपेटा, चेन्नई स्थित शांतिलाल सिंघवी के निवास पर गौतमलब्धि के सदस्यों और अनेक श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि आशीर्वाद को जो ले पाता है वह श्रेष्ठतम है और जो दे पाता है वह भी श्रेष्ठतम बनता है। भगवान महावीर ने चंडकोशिक पर आशीर्वाद बरसाए और चंडकोशिक ने उन्हें ग्रहण किया तो वह चंडकोशिक बना रह नहीं पाया। यदि हम भी अपने जीवन में ऐसे बन जाएं तो हमारा जीवन बदल जाए। जब आग में झुलसते नाग-नागिन के जोड़े ने परमात्मा के आशीर्वादों को ग्रहण किया और पूजनीय बन गए। जिसने आशीर्वाद ले लिया वह उपकारी देव बनता है।

हम चरण छूने के बाद आशीर्वाद देते हैं तो यह आशीर्वाद नहीं बल्कि बिजनेस जैसा है। जिन-जिन्होंने आशीर्वाद ग्रहण किए उन्हें बिना कुछ किए ही मंजिल प्राप्त हुई और जो नहीं ले पाए वे बहुत कुछ करके भी मंजिल नहीं पा सके।

परमात्मा ने जमाली और गौशालक को आशीर्वाद बहुत दिए थे लेकिन वे ले नहीं पाए। इस सत्य को स्वीकार करो कि हमारी सबसे बड़ी मूर्खता कोई है तो यह है कि जब-जब आशीर्वाद बरसते हैं हम उनसे मुंह फेर लेते हैं। आचार्य मानतुंग को बेडिय़ों से मुक्त करने के लिए कोई भी नहीं आया था लेकिन फिर भी उनकी बेडिय़ा टूटी थी क्योंकि वे परमात्मा के आशीर्वाद लेते ही चले गए। परमात्मा उत्तराध्यन सूत्र की आराधना में कहते हैं कि जो मां-बाप और गुरु को फूल से शूल के समान बनने को जो व्यक्ति मजबूर करते हैं, जिनके अंदर गुरु और मां-बाप की कृपा नहीं है, इससे बढ़कर कोई गुनाहगार नहीं है।

जो वरिष्ठजनों की कृपा ग्रहण करने में समर्थ है वह कठोर-से कठोर गुरु और मां-बाप को भी कोमल बना देता है। कंकर और बीज दोनों को पानी मिलने पर कंकर से कभी कंकर का जन्म नहीं होता जबकि बीज अपने समान अनन्त बीजों को जन्म देने में समर्थ बन जाता है। जिस बीज में पानी ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती है वह कभी अंकुरित नहीं हो पाते। इसी प्रकार इस दुनिया में आशीर्वाद मांगते तो बहुत लोग हैं लेकिन वे ग्रहण नहीं करते। अगर परमात्मा के आशीर्वाद ले पाए तो लोहा भी सोना बन जाता है।

गुरु मां-बाप और परमात्मा के आशीर्वाद लेने के लिए कोई कंडीशन नहीं होती है। बच्चा प्रणाम करे या न करे वे उसे सदैव आशीर्वाद की नजरों से ही देखते हैं। ऐसे मां-बाप को बुरी नजरों से देखने को जो मजबूर करता है उससे बढ़कर इस दुनिया में कोई पापी नहीं है।

जिसने तीर्थंकर का प्रसाद ग्रहण किया वही तीर्थ बना है और जिसने ग्रहण नहीं किया वह स्वयं तकलीफों में रहा और दूसरों को भी तकलीफें दी है। अर्जुनमाली और चंडकोशिक ने एक बार परमात्मा की कृपा ग्रहण कर ली तो उसके बाद उन्होंने कभी किसी को तकलीफ नहीं दी। उनके जीवन की दृष्टि ही चेंज हो गई। हम सभी परमात्मा के आशीर्वाद ग्रहण करने में समर्थ बनें।

जिसने आशीर्वाद लिया है वह कभी बददुआ दे ही नहीं सकता है। जिसके दिल में श्रद्धा लबालब भरी होती है वही आशीर्वाद लेने, उसे संग्रहित रखने और फलित करने का सामथ्र्य रखता है। सौभाग्यशाली हैं वे लोग जिन पर बड़े हुकुम चलाते हैं। समाचारी का विधान है कि गुरु और वरिष्ठजन जब कुछ कहे तो एक ही शब्द मन में होना चाहिए कि तथास्तु, जैसा आप कहते हैं वैसा ही होगा। इसे वही व्यक्ति स्वीकार कर सकता है जिसका दिल फूल जैसा कोमल है। स्वजनों के सामने कठोर बनने वाले दुनिया के सामने कोमल बन जाते हैं। इससे घर में तो आपकी बात तो मान ली जाएगी लेकिन अपनी हर सांस में आशीर्वाद देनेवाले मां-बाप और स्वजन बाहर कहीं नहीं मिलेंगे।

आशीर्वाद लेने में समर्थ बनो। अक्ल में तुम बड़े हो सकते हो लेकिन कृपा में तो बुजुर्ग और वरिष्ठ ही बड़े होते हैं। अक्ल से जीवन की शक्ल नहीं बनती, यह तो केवल आशीर्वाद से बनती है। रावण और कैकेयी को आशीर्वाद मिले थे लेकिन उन्होंने अपने मन की इच्छा पूरी करने में उन्हें लगाया तो कितने भयंकर परिणाम आए। उन्होंने अपने वरदानों को अपनी इच्छा के हिसाब से उपयोग किया और स्वयं के साथ दूसरों का भी दु:खदायी जीवन बना। परमात्मा के आशीर्वादों को अपने मन की कामना पूरी करने में लगाना ही नियाणा का पाप है।

जो जिनशासन से जुड़ता है उसे संसारिक दु:खों की परवाह नहीं करनी चाहिए, उसे अपनी समस्याओं को परमात्मा के चरणों में सौंप देना। अपना दिमाग गौतमस्वामी को सौंप देना और अपना दिल दीन-दु:खियों को सौंप देना चाहिए। आपके दिलो को कभी चोट नहीं लगेगी। इसी आस्था से गौतमलब्धी फाउंडेशन के माध्यम से एक व्यवस्था का निर्माण करने का प्रयास किया गया है। इससे समाज के हर व्यक्ति को जुडऩा चाहिए। धर्मसभा में गौतमलब्धि के ट्रस्टियों का आभार किया गया।

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