चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषाÓ ने कहा कि दुनिया में दो तरह के लोग हैं सज्जन और दुर्जन। सज्जन स्व पर दया करता है और दूसरों पर भी जबकि दुर्जन दूसरों दुखी करके जीता है। दोनों ही संसार में रहते हैं पहला दूसरों को हंसाकर जीता है और दूसरा रुलाकर।
जब दोनों संसार से जाते हैं तो एक रूलाकर जाता है और दूसरा हंसाकर। जीवन ऐसा जीएं कि लोगों में आपके सद्कार्यों की मीठी यादें छोड़कर जाएं। दुर्जन व्यक्ति सांप से भी अधिक नुकसानदायक है, वह संग रहनेवालों का भव-भव खराब कर देता है। कोयले की तरह ठंडा और गरम दोनों ही अवस्था में नुकसानदायक है।
संसार में तीन तरह के प्राणी हैं- पहला कांटों जैसा व्यक्ति अकारण दूसरों को कष्ट देता है, खुद शांति से नहीं रहता और दूसरों को भी नहीं रहने देता। दूसरा- जैसे के साथ तैसा व्यवहार करनेवाला व्यक्ति बुरा करनेवाले के साथ बुरा और बुरा करने वाले के साथ बुरा व्यवहार करता है। तीसरी श्रेणी का है फूल जैसा व्यक्ति जो दैवीय गुणों से परिपूर्ण होता है और दुख देनेवाले से भी सद्व्यवहार करता है, सदा उपकार की बरसात करता है।
चंदन जैसी शीतलता, दया, करूणा, अनुकंपा भावों से ओतप्रोत रहता है। जीओ औ जीने दो से आगे बढ़कर परहित में स्वहित का त्याग करता है। जिसके हृदय में दया, करूणा है वही दुनिया पर राज करता है, अमर होता है। भगवान महावीर के वीतरागपूर्ण संदेशों को आत्मसात कर सज्जनता का जीवन जीएं, तो महानता और उत्कृष्ट को प्राप्त करेंगे।
साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा समकित के पांच लक्षण सम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था। जिसमें अनुकंपा या दया का गुण है वह किसी को कष्ट में देख स्वयं कंपायमान होता है, जैसा सामने वाले का जीव है वैसा ही मेरा है ऐसा चिंतन समकिती व्यक्ति करता है। दया का महत्व सभी धर्मों में है।
भगवती सूत्र में दया के आठ प्रकार बताए हैं- स्वदया, परदया, द्रव्यदया, भावदया, निश्चयदया। अपनी आत्मा को पाप कर्मों से बचाना स्वदया है। कोई भी कार्य करें तो आत्मा की चिंता करें। आत्मा का ध्यान रखेंगे तो स्वदया से परदया स्वत: हो जाएगी। दूसरों को पीड़ा देना पाप है। जो अधर्ममार्ग पर चल रहे हैं उन्हें धर्ममार्ग पर लाना परदया है।
किसी की देखादेखी न करें, जो क्रिया कर रहे हैं उसकी जानकारी स्वयं को होनी चाहिए। ज्ञानपूर्वक क्रिया करना भावदया है। आत्मा में अवस्थित होना निश्चयदया है, स्वदया का पालन करेंगे तो एक दिन निश्चयदया जरूर कर सकेंगे। किसी कार्य को विवेक और यतनापूर्वक करना व्यवहारदया है। अहोभाव और यतनापूर्वक कार्य करने से आरंभ-समारंभ भी दया हो जाएगी।
जब गुरु, माता-पिता और चिकित्सक की तरह अन्तर के भाव साता पहुंचाने के हैं लेकिन बाहर से दुख और पीड़ा दिखाई दे तो स्वरूपदया है। अनुबंध दया को स्वरूपदया से विपरीत होती है। इसमें शिकारी और मछुआरे की तरह बाहर से दया दिखाई देती है लेकिन अन्तर में कष्टदेने की भावना होती है। समकित का पांचवां लक्षण है आस्था। धर्म पर पूर्ण श्रद्धा रखें। समकित से मोक्षप्राप्ति होगी।
धर्मसभा में दक्षिणपूर्व दिशा में सामूहिक दस लोगस्स साधना करवाई। मंत्री शांतिलाल सिंघवी ने कार्यक्रमों बताया कि 8 नवम्बर को पारसमल तोलावत द्वारा बिना दवा के रोग उपचार तथा कैंसर सहित अनेकों चिकित्सा विषयों पर विशेष व्याख्यान दिया जाएगा।
9 नवम्बर को श्री उमराव अर्चना चातुर्मास समिति द्वारा चातुर्मास काल में सभी समितियों, सहयोगियों और कार्यकर्ताओं के प्रति आभार ज्ञापन और 11 नवम्बर को चातुर्मास के अंतिम दिन अर्चना सुशिष्या मंडल साध्वीभगवंत के प्रति कृतज्ञता कार्यक्रम होगा। 12 नवम्बर को लोकाशाह जयंती मनाई जाएगी। धर्मसभा में संपतराज लुणावत, पांडिचेरी सहित अनेक स्थानों से श्रद्धालु उपस्थित रहे।