श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ में प्रवचन देते हुए आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने कहा कि जीवन की वास्तविक सफलता और लोकप्रियता पाने के लिए धन- दौलत अथवा शक्ति-संबल की आवश्यकता नहीं, उसके लिए आवश्यकता है – गुण, कर्म और स्वभाव की श्रेष्ठता की। जब तक गुण-कर्म-स्वभाव में श्रेष्ठता का समावेश नहीं होगा, बहुत कुछ धन- दौलत एवं शक्ति-संपन्नता होने पर भी मनुष्य वास्तविक लोकप्रियता नहीं पा सकता। जो गुणी है, उसका आदर क्या धनवान और क्या निर्धन दोनों ही करते हैं।उसकी पूजा-प्रतिष्ठा बाह्य आधार पर नहीं होती, आंतरिक गुणों के कारण ही होती है।
सहानुभूति, संवेदना, सहयोग, सेवा का गुण मनुष्य को वह लोकप्रियता प्राप्त करा सकता है, जो एक धनवान लाखों-हजारों रुपया खर्च करके भी नहीं पा सकता। सहानुभूति का एक शब्द, संवेदना का एक आंसू और सेवा का एक कार्य टनों स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान है। शोक के समय किसी को दिया हुआ सांत्वना का एक शब्द, दीन-दुःखी अथवा आपत्ति पीड़ित व्यक्ति की सेवा, आर्थिक सहायता से कहीं अधिक संतोषदायक होती है, एक निर्धन एक धनाढ्य की अपेक्षा कहीं अधिक लोकप्रियता पा सकता है, यदि वह अपने में वास्तविक गुणों का विकास कर लेता है।
जो सदाचारी है, सुकर्मवान है, उसका आचरण ही उसको लोकप्रिय बना देगा। लोग उस पर विश्वास करेंगे, उसे आदर की दृष्टि से देखेंगे और उसकी चर्चा करेंगे। कर्मों की श्रेष्ठता एवं निष्कलंकता में आस्था रखने वाला मनुष्य बड़े-से-बड़ा कष्ट उठाकर भी किसी को धोखा नहीं देगा, मिथ्याचरण अथवा आडंबर का अवलंबन न लेगा। कोई भी ऐसा काम न करेगा, जिससे वह, उसका परिवार, समाज, राष्ट्र अथवा मानवता लांछित हो ।जिसके पास जितने सद्गुण हैं, वह उतना ही बड़ा अमीर है। धन के बदले बाजार में हर चीज खरीदी जा सकती है।
इसी प्रकार सद्गुणों की पूंजी से किसी भी दिशा में अभीष्ट प्रगति की जा सकती है। जिसके भीतर सद्गुणों की पूंजी भरी पड़ी है, आत्मबल और आत्मविश्वास उसे दैवी सहायता की तरह सदा प्रगति का मार्ग दिखाते हैं। अपने मधुर स्वभाव के कारण वह जहां भी जाता है, वहीं अपना स्थान बना लेता है। अपनी विशेषताओं से वह सभी को प्रभावित करता है और सभी की सहानुभूति पाता है। दूसरों को प्रभावित करने और अपनी सफलता का प्रधान कारण तो अपने सगुण ही होते हैं।